हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://www.vmanant.com/?m=1

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

स्वागत है,

स्वागत है! पथिक तुम्हारा , तुम पहुंचे तोरण द्वार तक।
तेरा स्वागत करने आये , सब नगर निवासी द्वार तक।
तोरण द्वार है परिचायक , अब मंजिल बहुत समीप है।
जो कदम उठे थे राह पर , वो लक्ष्य के अब नजदीक है।

पर सावधान खुशकिस्मत राही , अभी चंद क़दमों की दूरी है।
संयत होकर कदम बढ़ावो , तुम्हे यात्रा करनी पूरी है।
दो पल चाहे सुस्ता लेना , मन को भी तुम बहला लेना।
संचित करके शक्ति नवीन , फिर पुन: राह पर चल देना।


ये उपलब्धि नहीं तेरी मंजिल , अभी तुमको आगे चलना है।
फहराकर विजय पताका , गौरवान्वित लक्ष्य को करना है।
फिर अपने विजय यात्रा का , श्रेय जनमानस को दे देना।
करके तुम अभिमान कोई , ना इतिहास कलंकित कर देना।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

ZEAL ने कहा…

Beautiful creation !

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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