हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 14 अक्तूबर 2012

कैसे दिल की बात कहूँ..

चाह रहा हूँ जो कहना , क्यों वो शब्द नहीं मै पाता  हूँ ।
निज भावों को बिना व्यक्त किये , अतृप सदा रह जाता हूँ ।
क्या करूँ कहूँ मै  कैसे वो , जो दिल में दबा रह जाता है ।
यूँ ही उम्र बीतती जाती है , मन उसे समझ नहीं पाता है ।
चलते चलते देर हो गयी , अब वापस जाया नहीं जाता है ।
क्या सोंचेगे दुनियावाले , ये सोंच के भी मन भरमाता है ।

बुद्धि नहीं देती है साथ , वह दिल को समझे कहाँ बिसात ।
अंतरतम कर सके प्रगट , कोरे शब्दों में है नहीं बिसात ।
प्रतिपल सदा सरोवर ही , बनकर रहने का है अभिशाप ।
नदी बने बिना घुट-घुट कर , मर जाने का शायद है श्राप ।
रुंधे कंठ बेकल नयनो में , है भटक रही अश्रु की धारा ।
दोष किसी को मै  दूँ कैसे , शायद अवरोध भी मुझको प्यारा ।


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रविवार, 26 अगस्त 2012

बस यू ही..


रे हठी इंसान क्यों , हठधर्मिता अपना रहा ।
छोड़ दे हठ को सभी , तू गलत राह पर जा रहा ।
ये अहम् है तेरा जो , तुझसे हठ करवा रहा ।
सर्वोच्चता  की ललक , मूर्खता करवा रहा ।
हठ दृष्टहीन होता सदा , पथ वो नहीं पहचानता ।
तोड़ कर सारे बन्धनों को , बस चलते रहना जानता ।

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शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

सोंचने की है जरूरत..

चाहतो का एक पुल था , जो मिलाता था हमें ।
सब व्यस्तताओ के बाद भी , वो जोड़ता था हमें ।
यादो में एक दूसरे के , सदा बने रहते थे हम ।
दूर भले रहे मगर , पास बने रहते थे हम ।
फिर वक्त ने बदली जो करवट ,दूरियाँ बड़ने लगी ।
ना चाहते हुए भी देखो , नजदीकिया घटने लगी ।

चाहतो का पुल शायद , जर्जर है होने लगा ।
आपसी सौहाद्र भी , शायद कहीं घटने लगा ।
कमियां एक दूसरे की, क्यों हमें दिखने लगी ।
प्यार भरी बाते भी , दिल में कहीं चुभने लगीं ।
एक दूसरे की जरुरत , क्या ख़त्म होने लगी ।
या मनोभावों पर हमारे , धूल है ज़मने लगी ।

सोंचने की है जरूरत , बदलाव ये क्या हो रहा ।
रिश्तो की डोर में ये , उलझाव है क्यों हो रहा ।
बाते है वो कौन सी , जो बदलाव ये ला रहीं ।
ना चाहते हुए दिल में , क्यों दूरियां बढ़ा रहीं ।
गर समझ पायें इसे , टूटने से बच जाए पुल ।
रिश्तो की प्यारी डगर , जोड़े रह जाये ये पुल ।

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गुरुवार, 28 जून 2012

जीवन..

धूप छांह है जीवन सारा , लगता इसी लिये है प्यारा ।
कभी हँसाये कभी रुलाये , फिर भी लगता हमको न्यारा ।
कभी क्रोध मे हमे जलाये , कभी प्रेम की धार बहाये ।
कभी गैर अपना बन जाये , अपनो को कभी गैर बनाये ।
कभी बहे दूध की नदियां , कभी तड़प पानी बिन जाए ।
कभी दुखो के बादल छाये , पल मे गीत खुशी के गाये ।

कभी द्वार पर लगता मेला , कभी हो घर वीरान अकेला ।
कभी प्रेम अतिशय यह पाये , कभी तरस साथ को जाए ।
कभी फ़ूल आंचल मे आये , कभी धूल से तन सन जाए ।
कभी मिले फ़ल बैठे बैठे , कभी परिश्रम से भी ना पाए ।
कभी जन्म की बजे बधाई , पल मे शोक म्रृत्यु की छाई 
रहे बदलता मौसम सा सब , नश्वर जीवन की यही दुहाई ।

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रिक्तता…


मनुष्य की इच्छाओ का , कभी अंत नही होता है ।
कितना ही मिले सुख , वो अनन्त नही होता है ।
दुख भले ही छोटा हो , सदा विशाल लगता है ।
बीत जाये वर्ष कितने , मन मे कसक रहता है ।
हर बार सोंचता है मन , आज मिले वरदान बस ।
फ़िर ना हम माँगेगे कुछ , जो मिलेगा रहेंगे खुश ।

फ़िर जैसे पूरी होती आशा , मन मे उठती नयी अभिलाषा ।
जो कुछ मिला उसे भुलाकर , जो मिला नही उसको पछताता ।
जन्म से लेकर पुनर्जन्म तक , व्याकुल होकर समय गँवाता ।
खोकर स्वप्नो की दुनिया मे , जीवन मृगमारीचका बनाता ।
अपनी अनन्त इच्छाओ का , वो अंत नही कर पाया है ।
पशु से मानव भले बना , महा मानव नही बन पाया है ।

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गुरुवार, 21 जून 2012

पुराने रोग..

जाने कैसी तपिश है , वर्षो से मन में मेरे ।
गीली लकड़ी सी सुलगती , ये सदा मन में मेरे ।
चाहता हूँ मै बुझा दूँ , एक पल में बस इसे ।
पर रोंकता है मन मेरा , जाने क्यों इससे मुझे ।
हो गयी आदत मुझे , शायद पुराने रोग की ।
या अभी भी है जरूरत , व्यर्थ के कुछ ढोंग की ।
जो भी हो अच्छी नहीं , मन में सुलगती चाहते ।
बस छोड़ देनी चाहिए , अब सारी पुरानी आदते ।
रोग बन जाये अगर , तन-मन की कोई जरूरत ।
फिर नहीं किसी बाहरी , शत्रु की कोई जरूरत ।
ज्वार का धर रूप जब , मुझको बहा ले जाये लहरे ।
उससे पहले जाना होगा , छोड़ कर अठखेलती लहरे ।

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मंगलवार, 12 जून 2012

जो मैंने थोड़ी सी पी ली..

क्यों नाहक ही नाराज हो तुम , जो मैंने थोड़ी सी पी ली ।
पल भर दिल के रिश्तो की , थोड़ी सी हकीकत तो जी ली ।
ये कागज़ के फूलो की दुनिया , लगती भले सलोनी है ।
लेकिन दिल के रिश्तो की , मुश्किल से सजती डोली है ।
मुझको आता नहीं दिखावा , करना जग में मेरे यार ।
चेहरा छुपाकर चुपके से , करना पीठ पर कोई वार ।

मै जो करता प्यार किसी से , उसे बताता हूँ खुल कर ।
करता जो दुश्मनी कभी मै  , वो भी निभाता हूँ खुल कर ।
दिल में कुछ और बोलू कुछ , ये करना मुझको आता नहीं ।
कोई लाग-लपेट में भरमाये मुझे ,  ये भी मुझको भाता नहीं ।
सच को सच झूँठे को झूँठा , निर्भय हो कहना आता मुझको ।
अपनी कमिया आगे बढ , स्वीकार भी करना आता मुझको ।

जो बिना बात के बात बढाये , ईंट का जबाब पत्थर से पाए ।
दिल को जो भी मेरे दु:खाये , वो भी कष्ट प्रतिफल में पाए ।
जो एक कदम मेरे प्रति आता , मै आगे बढ़ सम्बन्ध निभाता ।
जो कदम हटाया तुमने पीछे , ततक्षण पीछे हटना मुझको आता ।
जो कहना है मै कह के रहूँगा , भले ही थोड़ी पी  ली है ।
तुम्हे भला लगे या लगे बुरा , मैंने तो हकीकत जी ली है ।


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सोमवार, 11 जून 2012

फिर वही..

है डगर भी वही , है इरादे वही ।
चाह दिल में उठी , फिर से पा लूँ वही ।
रूप तेरा मुझे फिर लुभाने लगा ,
मेरे दिल में वो चाहत जगाने लगा ।
एक कंकड़ जो उछाला कही दूर से ,
मेरे मन में वो हलचल मचाने लगा ।

मेरी चाहत में कुछ भी नया है नहीं ,
बस वो बनके मेरी लत छाने लगा ।
जब भी देखूँ मै कोई चेहरा हँसी  ,
रात सपनों में तुझको बुलाने लगा ।
है डगर भी वही , फिर से मंजिल वही ।
दिल मे चाहत वही , पग में आहट वही ।

आगे बढ़ कर मै  चूमू उन्ही ओंठो को,
हाथो में मै  थामूँ उन्ही हाथो को ।
फिर से लौटा मै  लाऊ वही बीता कल ,
तुझसे नज़रे मिलाऊ ज्यों हो पहली नजर ।
है डगर भी वही , है इरादे वही ।
चाह दिल में उठी , फिर से पा लूँ वही ।

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शुक्रवार, 8 जून 2012

बंधन..

जो बोला तुमने सच ही बोला ,
सच के सिवा कहाँ कुछ बोला ।
क्यों  व्यर्थ मै  उससे आहत होऊ ,
जब तुमने अपने दिल से बोला ।
निश्चय ही हम सब आजाद है ,
इसका मुझको भी एहसास है ।
क्यों व्यर्थ सहे कोई बंधन पराये ,
स्वतंत्रता हम सबका अधिकार है ।

हाँ रिश्तो में यदि अपनापन हो ,
प्रेम समर्पण  सच्चे मन से हो ।
तो प्रेम का बंधन प्यारा लगता ,
सदा जीवन में व्यापकता लाता ।
पर प्रेम का पथ होता है संकरा ,
एक से ज्यादा सदा उसको अखरा । 
वही सफल हो पाया उस पर ,
जिसने त्यागा स्वयं को उस पर ।

यूँ तुम भी थे जिस बंधन में ,
वो प्रेम का ही बंधन था प्रिये ।
मैंने भुला दिया था स्वयं को ,
पर भुला ना पाए तुम स्वयं को ।
इसीलिए तुम्हे चुभता था बंधन ,
आहत करता था जबरन समर्पण ।
तो तुम्हे मुबारक हो आजादी ,
मै देता हूँ तुम्हे सम्पूर्ण आजादी ।


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गुरुवार, 7 जून 2012

तुम रखना याद...

समय कहाँ टिकता है कभी, जो रुकता वो अबकी बारी ।
चलना होगा तुम्हे सदा , संग संग करके उससे यारी ।
समय की गति को थाम सके , उसको बाँहों में बांध सके ।
बलशाली नहीं ऐसा कोई , क्षणभंगुर जग में है हर कोई ।
बेहतर है समय के साथ चलें , पछताकर कभी ना हाथ मलें ।
हर क्षण है सुनहरा दरवाजा , आगे बढ़ना हो तो तू आ जा ।

है कर्म के संग ही भाग्य तेरा , देखो ना भटके लक्ष्य कहीं ।
हर कदम सजग होकर रखना , अवसर ना चूके कोई कहीं ।
हर बात समझकर तुम कहना , न उठे प्रश्न उस पर कोई ।
हर कार्य धैर्य से तुम करना , ना हो उसमे नादानी कोई ।
संयत रखना वाणी को , ना तुम्हे कहे अभिमानी कोई ।
हक भले छीनना पड़ जाये , करना नहीं बेईमानी कोई ।

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बुधवार, 6 जून 2012

तुम्हे एहसास तो होता होगा ही...

प्रिये सच क्या है मुझे पता नहीं,
पर मेरे दिल से माना सदा यही । 
तुम्हे एहसास तो होता होगा ही ,
क्या कहना चाहा मैने तुमसे सदा ।
कभी कहा उसे मैने शब्दों में ,
कभी समझाया तुम्हे संकेतो मे ।


कभी कहकर भी वो कहा नहीं ,
जो कहने को व्याकुल रहा अभी ।
कभी तुम्हे सुनाया कोई कहानी ,
कभी पहेलियो में उलझाया हूँ ।
कभी कह्कर भी चुप रहता हूँ ,
कभी प्यार मे क्रोध जताया हूँ ।

कभी स्वयं रूठा पर तुम्हे मनाया ,
कभी तुम रुठे और मै झल्लाया हूँ ।
कुछ भी किया हो मगर सदा,
 तुम्हे अपना माना मैने सदा ।
क्या समझ सके हो तुम मेरे दिल को ,
या सब प्रयत्न व्यर्थ ही करता आया हूँ 
जो कहा अभी सब तुम्हे प्रिये ,
क्या समझ मे कुछ तुम्हे आया है ।

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मंगलवार, 5 जून 2012

भूँख..

कौन  कहता है क़ि उसे भूँख नहीं लगती ,
रोटी कपड़ा और मकान की ।
जायज या नाजायज प्यार और रिस्तो की ,
उचित या अनुचित धन और सम्पत्ति की ।
पद बैभव और उसके आडम्बर की ,
स्त्री, पुरुष या दोनों के रूप आकर्षण की ।

कभी न्याय तो कभी अन्याय करने की ,
औरो के मुख से अपनी बड़ाई सुनाने की ।
ताकत को अपने मुठ्ठी में रखने की ,
औरो को भेड़ो सा हाँक कर ले चलने की ।
सिद्धांतो का सच्चा अनुगामी दिखने की ,
नियमो को  चौखट के बाहर ही रखने की ।

कौन कहता है उसे भूंख नहीं लगती ,
मनुष्यगत स्वभावो की हूँक नहीं उठती ।
परे है वो मानवीय कमजोरियों से ,
और करता नहीं वो दिखावा कभी भी ।
अगर है कोई हमें भी बताओ ,
उस झूँठ के पुलिंदे से हमें भी मिलाओ ।

हमें भी लगाती है कई बार भूँख ये ,
अन्दर हो कुछ पर बाहर दिखे कुछ वो ।

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सोमवार, 4 जून 2012

परवाह..

परवाह करो तुम केवल उसकी ,
जिसको हो परवाह तुम्हारी ।
उसके लिए क्यों व्यर्थ तडपना ,
जो समझे नहीं परवाह तुम्हारी ।

बिन मांगे जो मिल जाए किसी को ,
वो माटी मोल हो जाता है ।
यही है जग की रीति सदा से ,
मुझे देर से समझ में आता है ।

भले सर्वस्य दान दे दो कुपात्र को ,
पर पुण्य ना अर्जित हो पाता है ।
जो अपना है वो जन्मजात अपना है ,
गैरो से रक्त सम्बन्ध कहाँ बन पाता है ।

कभी धोखा देते कुछ अपने भी ,
गैरो का साथ काम तब आता है ।
यहाँ अपने पराये का अंतर ,
जीवन भर चलता जाता है ।

जो समझे ना अन्तर्वासना औरो की ,
वो निज भोलेपन से मूर्ख बन जाता है ।

धोखा दिया मुझे अपनो ने ,
इसी दुःख में जलता जाता है ।



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जो तृप्त नहीं हो पाए अभागा..

जो अभी तृप्त नहीं हो पाया हो ,
सच्चा प्यार समर्पण पाकर भी ।

वो कभी तृप्त नहीं हो पायेगा ,
सारे जग के प्यार को पाकर भी ।


बंजर भूमि सा उसका जीवन ,
व्यर्थ बरसना उस पर मृदु जल ।

प्यास ना उसकी बुझ पाए कभी ,
ना समझ सके वो क्या होती तृप्ति ।


कभी वक़्त के साथ ना बदले वो ,
ना स्वीकार करे निज त्रुटियों को ही ।

जो तृप्त नहीं हो पाए वो अभागा ,
मूर्ख है वो जो उसके संग लागा ।


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गुरुवार, 31 मई 2012

तेरा ख्याल…

नींद आंखों मे उतरने लगी है मगर ,
पलके बंद हो तो कैसे उलझा है दिमाग ।
दिल तो कहता है सो जाओ अब चैन से ,
दिमाग कहता है कर लो थोडा हिंसाब ।
हल्की सी भी आहट से खुल जाती पलके ,
है खटखटाते मस्तिष्क को कितने विचार ।
जितना तुझको भुलाने की कोशिश मै करता ,
उतना ही मन मे आता है फ़िर तेरा ख्याल ।
सोंचता हूँ सीख लूँ अब खुली पलको से सोना ,
सोया समझ धोखे से नही लोगे मेरी जान ।
अटक जाती है मन मे बात छोटी हो या बडी ,
विश्लेषण करना है आदत बुरी मेरी जान ।
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बुधवार, 30 मई 2012

तुम ना आये...

बस तेरे इन्तिज़ार में बैठ,
हमने सारा दिन गुजार दिया 
तुम नहीं आये तो लगा,
हमने मुद्दते गुजार दिया ।

        था भोर होने के समय से ,
        तुमसे मिलने का इन्तिज़ार ।
        फिर शाम आयी और ढल गयी ,
        पर तुम ना आये मिलने यार ।

                क्या करे मजबूर है कुछ ,
                अपने किये वादे से हम ही ।
                एक तेरा ही इन्तिज़ार सदा ,
                करते रहे मुद्दत से बस हम ही ।

                        तुम ना आये मिलने अगर ,
                        कोई झूंठा बहाना ही बनाते ।
                        मिलने का हुआ मन नहीं ,
                        कहकर दिल ना यूँ तुम तोड़ जाते ।

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मंगलवार, 29 मई 2012

चुपचाप गुजरता जाता हूँ…

जज्बातों की भँवर थी ,
मन मे थी कसक कोई ।
बहता जा रहा था उसमे ,
सूखे तिनके की तरह कोई ।
देखा जो किनारे खडे तुमको ,
याद आया कितना अजीज था कोई। 
बहा ले जाता तुमको भी लहर मे अपने ,
याद आ गया अचानक तेरा कहा शब्द कोई ।
यूँ तो सब कुछ कहा है तुमसे ,
फ़िर भी लगता सब अनकहा है तुमसे ।
सोंचता हूँ जो मिलो कह दूँ अब से ,
डरता हूँ खफ़ा ना हो जाओ तुम फ़िर से ।
मै तो डूबता उतराता बह रहा हूँ खुद से ,
एसा ना हो कही डुबा ना दूँ तुम्हे फ़िर से ।
यही सोंच कर चुपचाप गुजरता जाता हूँ ,
बिना कुछ बोले तेरी यादों को समेटे जाता हूँ ।
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शुक्रवार, 18 मई 2012

तुम अब भी वैसे ही हो..

क्यों होते बेचैन हो इतना , क्यों स्वयं को भरमाते हो ।
सतरंगी इस जीवन से , क्यों अपना चेहरा छिपाते हो ।

मैंने सोंचा था शायद ,  जीने की कला तुम सीख गए ।
मौसम के परिवर्तन का , कुछ आनंद उठाना सीख गए ।

पर तुम अब भी वैसे ही हो , जैसा मै तुमको छोड़ गया ।
अचरज भरी निगाहों से , मुझे देख रहे क्यों छोड़ गया ।

मैंने सोंचा था शायद , मेरे जाने से तुम संभल जाओगे ।
मुझपर लगाये आरोपों से , आगे तुम निकल जाओगे ।

तुम थे तब मेरे बंधन में , जो तुमको दुख पहुंचता था 
निर्द्वंद जीवन का सुख , तब मन को तेरे ललचाता था ।

लेकिन तुम हो वहीं खड़े , जहाँ मै तुमको छोड़ गया था ।
देख तुम्हे होता है दुःख , क्यों मै तुमको छोड़ गया था ।

चलो लौट मै आया फिर , सच पूँछो गया कहाँ था दूर ।
तुम भले ना अपना समझो , तुम हो मेरे आँखों के नूर ।


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मन की गांठे..

मन की गांठे है कुछ ऐसी , लगती सुलझी फिर भी उलझी ।
जितना ही इन्हें सुलझाता हूँ , स्वयं और उलझता जाता हूँ ।
कलम उठाया खोली डायरी , सोंचा फिर कुछ लिख ही डालूँ ।
बहुत दिनों से लिखा नहीं , कुछ मन के भावो को लिख डालूँ ।

जो अपना हाल ना लिख पाऊँ , अपनो का हाल ही लिख डालूँ ।
इसी बहाने मन की अपने , कुछ गांठो को ही सुलझा डालूँ ।
यूँ तो मै हूँ सुलझा इतना , कभी उलझन के नजदीक ना जाऊं ।
मगर कभी जो उलझ गया , फ़िर उलझन में ही रम मै जाऊं ।

आदत है उलझन सुलझाना , औरो के फटे में टांग अडाना ।
सुलझाते हुए औरों की उलझन , आ बैल मार मुझे चिल्लाना ।
जब दोष मेरा अपना ही है , क्यों औरो को आरोपित करूं ।
जब मन में गांठे हो उलझी , क्या शब्दों में मै भाव भरूं ।

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रविवार, 6 मई 2012

क्यो होते बेकल रे मनवा…

क्यो होता बेकल रे मनवा , जग तो रिश्तो का मेला है ।
आज यहां कल वहां पर डेरा , ये जग बस रैन बसेरा है ।
आज तेरे जो संगी-साथी , कल होंगे किसी और के वो ।
आज शान जिनकी तुझसे , कल होंगे किसी और के वो ।

रोज बदलता जल नदिया का , रोज बदलती राह नदी ।
रोज पूर्व मे सूरज उगता , मगर नही टिकता है कभी ।
मौसम आते जाते हैं , नित नयी छ्टा वो लाते हैं ।
चाहे जितना चले पथिक , राह बदल ही जाते हैं ।

मत हो यूँ बेकल तू मनवा , यह तो जग का खेला है ।
आज अमावस रात अगर , कल पूर्णमासी का मेला है ।
कितना ही प्यारा हो तुमको , वस्त्र पुराना होगा ही ।
कितना ही तुम उसे सहेजो , उसको फ़टना होगा ही ।

इसी तरह जीवन के रिश्ते , जीर्ण उन्हे भी होना है ।
आज भले वो साथ तुम्हारे , कल तो उनको खोना है ।
मत सोंचो बाते कल की , देखो आज जो मेला है ।


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मूक, बधिर, वाचाल..

लोग कहते है ये इन्सान कितना बोलता है ?
शब्दों को शब्दों से ये काटता है ,
अपने ही बातों की रट लगाता है ।

सीखा नहीं इसने कभी, चुप हो रहना ।
ना जाने क्यों ये इतना बोलता है ?
तो जाकर पूंछा मैंने ये सवाल उसी से ,

बताया फिर हकीकत भी उसने बोलकर ही ।
ये दुनिया अजब मूर्खो की है दुनिया ,
सभी दूसरो को हैं बस उपदेश देते ।
उपदेश तो चलो हम चुप रहकर भी सुन लें ,
मगर तोहमते भी आदतन लगाते रहते सभी ।
शुरू के दिनों में मै सुनता था केवल  ,
मगर मेरी हद भी गुजरने लगी फिर ।
तो मैंने कहा अब बनकर दर्पण सा रहूँगा ,
जो जैसा कहेगा उससे वैसा कहूँगा ।

मगर इस जहां में है सभी वाचाल ही ,
फिर कैसे रहूँ मै जग में चुपचाप ही ।
अगर ना बोलो तो सब कहते यही ,
देखो वो डरकर कैसा खड़ा है अभी ।
अगर कुछ  बोलो तो कहते सभी ,
देखो ये रहता नही चुपचाप कभी ।

अगर सच वो बोले तो सुन लूँ मै केवल ,
मगर झूँठ का साथ नहीं होता मुझे बर्दास्त।
है अगर गर्ज, मर्ज दुनिया की गप्पे लड़ना,
तो सुनना पड़ेगा उसे मेरा भी अफसाना ।
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शनिवार, 5 मई 2012

एक सवाल..

नाहक ही पूंछ बैठे हम , कल एक सवाल उनसे ।
वो जिन्हे हम याद करते, थकते नही है दिल से ।

मन के कोनो मे जिनकी, याद बसी रहती है हर पल । 
ना केवल फ़ुरसत में, व्यस्तता के पलो मे भी हर पल ।

सवाल था सीधा सा, क्या कभी हम याद आते है उन्हे । 
बड़ी ही मासूमियत से फिर , वो बोले देखते हुये हमे ।

अरे क्यो सोंचा हम कभी याद करते नही तुम्हे ?
हर खाली लम्हों मे बस आप याद आते है हमें !

बात सही थी, यूँ आयी गयी और भुला दी गयी कुछ पल मे ।
पर यह भी सच है उन्हे खाली लम्हा मिलता कहां जीवन मे ?

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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

एतबार..

तुम जो अक्सर ही ताना कसते हो, झगड़ते हुए मुझसे ।
या कभी प्यार से, फिर उन्ही सवालो को उठा देते हो..।

क्यूँ नहीं मुझको हो पता पूरा एतबार, अब भी तुम पर...?
पर कभी सोंचा है तुमने यही, मेरी जगह खुद को रखकर ?

लो आज बताये देता हूँ तुम्हे खुले दिल से दिलबर,
मै खाली शब्दों पर एतबार नहीं कर पाता अक्सर ।

खाली शब्दों को मै कोरा कागज कहता हूँ आदतन अनपढ़ ।
हाव-भाव जज्बातों की भाषा ही मै समझ पाता हूँ अक्सर...।

तो तुम्हारा सवाल भी अपनी जगह जायज है अब भी ।
और हमारे भरोसे का अंदाज भी वैसा ही है अब अभी ।

क्या करो तुम भी मजबूर हो अपनी आदत से दिलबर ।
हम भी मजबूर है अपनी चाहत की अदा से अक्सर ।

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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कुछ बहुत पुरानी बाते...

रात अचानक जाने कैसे , याद मुझे तुम आये प्रियवर ।
खोया था मै अपने मन के , उठे खयालो में प्रियवर ।
कुछ भूली बिसरी यादे थी , कुछ बहुत पुरानी बाते थी ।
कुछ याद लौट कर आती थी , कुछ मन को मेरे सुहाती थी ।
फिर जाने कैसे तेरी यादे , बनकर आँधी सी छाने लगी ।
मुझको मेरे अंतर्मन तक , व्याकुल कर वो जाने लगी ।

यूँ तो जाने कितने दिन, वर्ष काल महीने बीत गए है ।
लेकिन शायद मेरे मन में , वो अब भी ताजे बने हुए है ।
माह जेठ था शायद वो , धरती व्याकुल प्यासी थी ।
तेरे अधरों की तपिश मुझे , पल में जलाने वाली थी ।
इससे पहले कि जलकर मेरा , हश्र पतंगे जैसा होता ।
तेरे प्रेम की अग्नि में , तपकर स्वर्ण मै शायद होता ।

दूर कही कुछ बदली छाई , बारिश संग वो लेकर आयी ।
लगे भींगने हम दोनों ही , जब बंद हो गयी बहनी पुरवाई
शायद सावन आया था वो , घनघोर घटा संग लाया था
उसके अविरल धारा ने फिर , कुछ मेरा अश्रु बहाया था
इससे पहले की अश्रु मेरे , खारा करते मीठी नदियों को  
रोम रोम मेरा लगा ठिठुरने , अगहन की ठंडक आने लगी

जब तक आया पूस माह , तुम मुझसे दूर ही रहने लगे
माघ की ठंडक के संग शायद , राह नयी तुम चुनने लगे
फाल्गुन में भी मिले नहीं तुम , होली बदरंग सी बीती थी
लिए अबीर गुलाल मै बैठा था , सज रही तेरी जब डोली थी
यूँ तो गुजर गए है अब तक , कुछ वर्ष महीने दिन अरु काल
लेकिन मेरे मन में अब भी , शेष कही है तेरा हाल.............


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गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

एक सितारा..

दूर गगन के कोने में , जो एक सितारा चमक रहा ।
वीरान अकेली राहों में , वो मेरा साथी सदा रहा ।
जब जब औरो ने मुझको , चुपचाप अकेला छोड़ दिया ।
मुझको मेरी महफ़िल में , जब गैर बनाकर छोड़ दिया ।
वो एक सितारा आगे बढ़ , हर पल मेरा साथ दिया ।
जब दिखी नहीं परछाही भी , हमसाये का एहसास दिया ।

अब आज अकेला है जब वह , क्यों न उसका साथ मै दूं ।
चुपचाप किनारे रहकर मै , इस रिश्ते का बलिदान क्यों दूं ।
हाँ कल फिर से चमकेगा , कोई और नया सितारा फिर ।
लेकिन क्या दिल का रिश्ता , हम जोड़ सकेंगे उससे फिर ।
सम्बन्ध सदा ही बनाते है , ठोस कसौटी पर कसकर ।
मित्र सदा ही मिलते है , दिल में औरो के बसकर ।

अगर चाहिए मित्र 'अनंत' , रिश्तो को कसौटी पर परखो ।
लेकिन उससे पहले तुम , स्वयं को निश्चित ही परखो ।

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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

फरियाद..

तेरी यादो में ही कट गयी , देखो कल मेरी सारी रात ।
जब होने लगा सबेरा तब , फिर आयी मुझे तेरी याद ।

तुम ही थे मेरे स्वप्नों में , और हकीकत में भी पास ।
बीत रहे हर एक पल में , केवल तुम ही थे  मेरे साथ ।

आँखों  में बस  तेरा चेहरा , मन  में बस तेरी यादे  है ।
नींद नहीं आती है मुझको , एक तेरी याद में जागे है ।

सोच रहा है मन मेरा , क्या तुमको भी मै आया याद ।
तुम साथ रहो मेरे हर पल , यही मन करता फरियाद ।

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रविवार, 25 मार्च 2012

ऐसा क्यों होता है..?

ऐसा क्यों होता है अक्सर , जग सोता मै जागा करता  ।
नींद से बोझिल आँखों में , तेरा प्रतिबिम्ब सजाया करता ।
तुम तो मुझको भुला चुके , यादो को सब मिटा चुके ।
मेरे दिए सभी उपहार , वापस करके जा भी चुके ।
पर हाल बता दो पत्रों का , जो मैंने तुमको भेजे थे ।
अपने दिल के अरमानो को , शब्दों के मध्य समेटे थे ।

हर एक शब्द जो उसमे था , तुमपर अधिकार जताता था ।
मेरे व्याकुल मन को वो , थोडा सम्बल पहुँचाता था ।
तेरे बिना अकेले में , तेरा एहसास दिलाता था ।
तेरी बाँहों का झूला बन , सपनों में मुझे झुलाता था ।
तेरे कदमो को जबरन , वो मेरी तरफ बदता था ।
मेरी छाया प्रतिपल तेरे , चारो तरफ बनता था ।

तुम कहती थी पत्र मेरे , दिल को व्याकुल कर जाते है ।
तेरे तन-मन दोनों में , एक प्यास नयी जगाते है ।
लौटा दो मुझको पत्र मेरे , जो मैंने तुमको भेजे है ।
संबंधो का अंतिम बंधन , जो हम दोनों को लपेटे है ।
शायद मै भी भुला सकूँ  ,  समय जो साथ गुजारे है ।
सहेज सकूँ  उन टुकड़ो को , जो दिल के मेरे बिखरे है ।


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रविवार, 11 मार्च 2012

अभिनय सम्राट..

कुछ लोग है जीते मंचो पर , तरह तरह के भावो को ।
तरह तरह के चरित्र निभाते , जीवंत सभी को कर जाते ।

निश्चित ही उनके अभिनय में , रचा बसा होता है जीवन ।
तभी श्रेष्टतम कहलाकर वो , सम्मान सभी से बरबस पाते ।
उनके निभाए चरित्र सभी के , अंतरमन में है बस जाते ।
उनके कहे हुए शब्दों से , कुछ नए मानदंड बन जाते ।

श्रेष्ट है उनका अभिनयपन , श्रेष्ट है उनकी कला साधना ।
लेकिन कहा नहीं जा सकता , उनको अभिनय सम्राट यहां ।
वो पद ऊँचा है और उसके , अभिनय मापदंड भी ऊँचे है ।
फिर भी कुछ लोग यहाँ पर , उसके आस पास ही जीते है ।
ये लोग निरंतर करते है , अपने जीवन में अभिनय ।
तरह तरह के लोगो से , रंग रूप बदल कर मिलते है ।

पल पल में है बदला करते , इनके मन के भाव सभी ।
इनके अपने अरमानो के , आगे व्यर्थ हैं लोग सभी ।
मूर्ख समझते है ये जग को , अपने अभिनय कला के आगे ।
तरह तरह के चरित्र निभाते , ढोंग निरंतर करते जाते ।

सच और झूंठ का घालमेल कर , अपने को ये श्रेष्ट कहाते ।
निश्चित ही ये जन्म से ही , अभिनय सम्राट है बनकर आते ।


होली के रंगों के साथ...

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बुधवार, 7 मार्च 2012

जय हो यू.पी. के भैया लोगो की....

जय हो यू.पी. के भैया लोगो की....
 (१)

चल हथिया , चल हथिया ,
इस्तीफा देने राज्यपाल के पास ।
जनता ने है हवा भरी ,
अबसे चलेगा सायकिल  राज ।



जनता ने है चोट किया ,
हाथी हो गया पस्त निराश ।

कुचल गया है हाथ का पंजा ,
मुरझाया कमल का फूल है आज ।


टायर टूयूब नए डलवाकर ,
चली है फिर से साइकिल आज ।
अब देखे क्या किस्मत प्रदेश की ,
होगा सुशाशन या फिर आएगा गुंडा राज ?

(२)

ब्रेवो राहुल,
हार जीत होती रहती है ,
नर हो न निराश करो मन को.....।

वेलडन अखिलेश,
अपने सपनों को साकार किया ,

पिता को सिंहासन उपहार दिया ।

ना होना निराश उमा भारती..
अभी जन्मभूमि का  काज है बाकी ।


अब रेस्ट करो थोडा मायावती..
मतवाला हो गया तेरा हाथी ।


होली की आप सभी को सपरिवार हार्दिक शुभ कामनाये.....

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रविवार, 4 मार्च 2012

घुमा फिराकर..


पहले लोगो को अक्सर गुनगुनाते सुनता था....
"तू जो नहीं तो कुछ भी नहीं , ये माना महफिल जवाँ है हँसी है....।"
और आजकल सुनने को मिलता है....
"आप नहीं कोई और सही...कोई और नहीं कोई और सही....।"

अफसोस.... पूरब और पश्चिम का अंतर समाप्त होता जा रहा है....!

थोडा घुमा फिराकर कहूँ तो...
"मेरा जीवन कोरा कागज...." से 
"जिंदगी प्यार का गीत है...." महसूस करके 
"ओंठो से छू लो तुम..." की तमन्ना में 
"तुझको देखा तो ये जाना सनम..." के बाद 

"ये मेरा दिल प्यार का दीवाना..." और 
"आ जाने जाना..." के चक्कर में 
"काँटा लगा, उई रब्बा...." महसूस करके 
"दिल में है मेरे दर्दे डिस्को..." गाते हुए
"लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए..." से 
"बीड़ी जलईले जिगर से पिया..." के हालात से गुजरते हुए
"बाबू जी जरा धीरे चलो..." कहने के वावजूद जब 

"शीला की जवानी..." ने 
"मै आयी हूँ यूपी. बिहार लूटने..." के हालात बनाये और उसके आगे जब
"मुन्नी बदनाम हुयी..." तब तक भारत इतना बदल गया कि पुरानी प्रेमिका जिसके लिए..
"महबूबा ओ महबूबा..." की रट लगायी जाती थी वो नादान जहाँ एक तरफ...
"पिया तू अब तो आ जा..." की धुन पर नाहक ही टेसुए बहते हुए 
"तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे..." की रट लगाये जा रही है वही दूसरी तरफ 
"चिकनी चमेली..." खुलेआम शराब की बोतल लटकाकर जिल्लेइलाही की परवाह किये बिना सलीम के साथ
"अनारकली डिस्को चली..." बताने लगी है...।

अब क्या कहूँ , क्या ना कहूँ.....दिमाग कहने से रोंकता है पर दिल कहने से बाज नहीं आता....!
अपने तो हालात ऐसे है कि......"काजी बेचैन क्यों..? शहर के अंदेशे में...।"

वैसे 
मै कह कर भी कुछ कहता नहीं,
फिर बिना कहे सब कह जाता हूँ ।
जो अपने है वो अपने है ही ,
गलत दिखे गैरो को भी लतियाता हूँ ।
जब तक बंद किये हूँ नेत्र,
बुद्धं शरणम मुझको समझो ,
भृकुटी हुयी तिरछी ज्यो ही ,
परशुराम का शिष्य ही समझो ।

तो अनुरोध है श्रीमान.....
शब्दों पर ना जाये मेरे,
बस भावो पर ही ध्यान दे..
अगर कही कोई भूल दिखे ,
तत्काल ही उसे सुधार दे । 

तो वापस चलता हूँ अपने..."अनंत अपार असीम आकाश" में.. 
क्योंकि अब तो मेरी लंका भी मिटटी में मिल गयी है.. जहाँ 
"त्रेता युग" में "दस शीश दशानन रावण हूँ, मै लंकापति लंकेश्वर हूँ" की मेरी गर्जना सुनकर...  
देव,दानव,यक्ष,किन्नर,गन्धर्वो समेत मानवों कि पाप-आत्माए काँप उठती थी।

और इतना तो जान ही गया हूँ कि कलयुग में..."दीवारों से सर टकराने से अपना ही सर फूटता है.....।"
(मूलत: ये पोस्ट फेसबुक पर किसी खास को लक्ष्य करके लिखा गया था)
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गुरुवार, 1 मार्च 2012

प्यार,छल और कपट..

क्यों चाह रहे उस मंजिल को , जहाँ रूह नहीं बच पानी है

क्यों खोजो रहे वह प्यार पुन: , जो छल और कपट का सानी है । 

झूंठे सच्चे वादों में क्यों ,
फिर मन तेरा ललचाता है ?
वो है एक मृग मरीचका ,
जो मन तेरा भटकता है..!


यदि मिल ही जाये फिर से , छल और कपट में लिपटा प्यार  
क्या खुश रह पावोगे जीवन भर , पूँछो अपने दिल से एक बार  

मेरा तो कर्त्तव्य यही .....,
मै समझाऊंगा बारम्बार 
जब जब व्याकुल होगे तुम ,
मै तुम्हे संभालूँगा हर बार  

सच और झूँठ के अंतर को , मै तुम्हे बताऊंगा हर बार 
वचन दिया है मैने , सत्य का साथ निभाऊंगा हर बार 
फिर चाहे मुझको अपनो का ,
अर्जुन सा करना पड़े विरोध 
दूर करूँगा हर बाधा को ,
जो बनना चाहेगा अवरोध 

बस मुझको तुम दो इतना वचन , नहीं जीवन में निराशा लाओगे
तोडा है जिसने दिल तेरा , भुला उसे तुम जीवन में आगे जाओगे
हाँ ये ईश्वर की सदइच्छा ही है ,
तुम्हे नर्क के द्वार से वापस लाया 
देकर बस थोडा सा कष्ट तुम्हे ,
ज्यादा कष्टों से तुम्हे बचाया 

समझे प्यारे....... यही सत्य है जीवन का..!
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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