प्रिये सच क्या है मुझे पता नहीं,
पर मेरे दिल से माना सदा यही ।
तुम्हे एहसास तो होता होगा ही ,
क्या कहना चाहा मैने तुमसे सदा ।
कभी कहा उसे मैने शब्दों में ,
कभी समझाया तुम्हे संकेतो मे ।
कभी स्वयं रूठा पर तुम्हे मनाया ,
कभी तुम रुठे और मै झल्लाया हूँ ।
क्या कहना चाहा मैने तुमसे सदा ।
कभी कहा उसे मैने शब्दों में ,
कभी समझाया तुम्हे संकेतो मे ।
कभी कहकर भी वो कहा नहीं ,
जो कहने को व्याकुल रहा अभी ।
जो कहने को व्याकुल रहा अभी ।
कभी तुम्हे सुनाया कोई कहानी ,
कभी पहेलियो में उलझाया हूँ ।
कभी कह्कर भी चुप रहता हूँ ,
कभी प्यार मे क्रोध जताया हूँ ।
कभी पहेलियो में उलझाया हूँ ।
कभी कह्कर भी चुप रहता हूँ ,
कभी प्यार मे क्रोध जताया हूँ ।
कभी स्वयं रूठा पर तुम्हे मनाया ,
कभी तुम रुठे और मै झल्लाया हूँ ।
कुछ भी किया हो मगर सदा,
तुम्हे अपना माना मैने सदा ।
तुम्हे अपना माना मैने सदा ।
क्या समझ सके हो तुम मेरे दिल को ,
या सब प्रयत्न व्यर्थ ही करता आया हूँ ।
या सब प्रयत्न व्यर्थ ही करता आया हूँ ।
जो कहा अभी सब तुम्हे प्रिये ,
क्या समझ मे कुछ तुम्हे आया है ।
4 टिप्पणियां:
बेहतरीन
बहुत सुंदर भाव है........
सादर.
उन्हें पता तो सब होता है पर फिर भी अनजान बने रहते हैं वो ... सुनना चाहते हैं आपसे ...
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