क्या कहना अफवाहों का , वो बेसिर पैर की होती है ।
कहाँ से उनका जन्म हुआ , ये बात छिपी ही रहती है ।
जन-मानस है संचरण मार्ग , और वायु वेग से चलती हैं ।
अल्प काल में सुरसा सा , सौ योजन का मुख करती हैं ।
अजर अमर अविनाशी होकर , झूंठ को सच में बदलतीं हैं ।
इनकी माया के आगे , दाल नहीं सच की गलती है ।
है शीश नहीं जिसे काट सकें , ना पैर हैं जिसको बांध सके ।
स्थूल नहीं काया इनकी , जिसको कैद में डाल सकें ।
विकसित हो मानव कितना , ना इसकी गति को थाम सके ।हो नगर मोहल्ला चाहे गाँव , अफवाह का जन्म ना टाल सके ।जितना ही प्रतिकार करो , उतनी यह बलवान बने ।कार्य सिद्ध हो जाने पर , स्वयं से अंतर्धान बने ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
बहुत सही लिखा है आपने ...
कर्म करते रहो ...
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