आप जो आये नहीं , उजाड़ ली जिंदगी हमने ।
सब्र की सीमाएं थी , हम प्रतिक्षा करते कब तक ।
कागजो को स्याहियों से , हम भरा करते कब तक ।
आपने ना भुलाने की , हमसे कसम ले डाली थी ।
छोड़ कर जाना नहीं , ये बात भी उसमे डाली थी ।
फिर आपके भूल जाने से , जिंदगी मेरी खाली थी ।
छोड़ दी मैंने उसे , क्यों करनी उसकी रखवाली थी ।
वादा निभाया मैंने और ,लाज बच गयी तेरी भी ।
अगले जन्म में मिलने की , आस बच गयी मेरी भी ।
मुक्त मै करता हूँ तुमको , तेरे भूले बिसरे वादों से ।
मत करना तुम ग्लानि कभी , अपने अधूरे वादों से ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
bhut sundar...
वादा निभाया मैंने और, लाज बच गई तेरी भी।
अगले जन्म में मिलने की, आस बच गई मेरी भी।
मुक्त मैं करता हूँ तुमको, तेरे भूले बिसरे वादों से।
मत करना तुम ग्लानि कभी, अपने अधूरे वादों से।
bahut khoob vivek bhai, Bejod!
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