नर्क तो पहले से ही , हर तरफ फैला यहाँ ।
चार दिन की जिंदगी , तुम उसे हँस कर जियो ।
दुश्मनी सब भूल कर , दोस्त बनकर तुम जियो ।
आज लगा है हाट यहाँ , बस दो पल का ठाठ यहाँ ।
गुजरेगा ज्यों कारवां , खाली होंगे सब घाट यहाँ ।
आज बहारे बसंत यहाँ , झुंकने दो फूलों की डालें ।
फिर जब पतझड़ आएगा , सूनी होंगी सारी डालें ।
जब तक गाती है कोयल, गाने दो उसको मस्ती में ।
कोयल के चुप होते ही , बस कौवों होंगे बस्ती में ।
मत बाँधो तुम नदियों को , बहने दो जब तक बहती हैं ।
तेरे पापों के कलुष से वो , पहले ही मैली रहती हैं ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
कविता में बहुत अच्छा संदेश दिया है आपने...
इस रचना के लिए बधाई स्वीकर करें.
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