बल से किसी भी कार्य को , जबरन करा सकते है हम ।
बल नहीं तो कुछ नहीं , ना शांति होगी ना प्रगति ।बल बना सकता है दास , मनुष्य के शारीर को ।
ना विजय का हर्ष होगा , ना सही होगी नियत ।
पर क्या यही ध्रुव सत्य है , बल ही परम तत्व है ?
बल से कहाँ जुड़ता कोई , होता हमें बस भ्रम है ।
और कुछ हद तक कहें , मनुष्य के मष्तिष्क को ।
पर समर्पण की समग्रता , भावनाओं से है आती ।
कार्य के परिणाम को , वो शिखर पर है पहुँचाती ।
हर लक्ष्य को अपना बनाकर , संघर्ष ह्रदय से करवाती ।
निज-सामर्थ का अतिक्रमण कर , समूह बल वो बन जाती ।।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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