पुरनम ना हुयी हो आँखे जब , कैसे नजर हटा लूँ मै ।
जब तक होश है बाकी कैसे , अपनी पीठ दिखा दूँ मै ।
जब साईं मेरा बाँट रहा , क्यों नाप तौल कर आज पिऊ ।
अब आई जशन की बारी है , क्यों खड़ा कहीं एकांत रहूँ ।
देखो आज बहारें भी , छक कर पीने आयीं हैं ।
नील-गगन और धरती भी , मदहोशी को पायीं है ।
पीने दो मुझको भी छक कर , जन्मो का मै प्यासा खड़ा ।
इस पर है मदिरा साईं की , उस पर है रुखा जगत खड़ा ।
जब तक शेष है मै मुझमें , मदहोशी कहाँ आ पायेगी ।
इस छोटे से दिल में कैसे , साकी की जगह हो पायेगी ।
मत रोंको मुझको आज अभी , मिट जाने दो मयखाने में ।
जो आज चूक मै गया कहीं , कई जन्म लगेंगे जाने में ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
अच्छी पंक्तिया ........
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यहाँ भी आये एवं कुछ कहे :-
समझे गायत्री मन्त्र का सही अर्थ
जितनी बढ़िया कविता है, उतनी ही सुंदर तस्वीर।
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