"कलियुग के पाँच हजार साल बीतने पर गंगा भी पृथ्वी से चली जाएगी।" - देवी भागवत पुराण
यह पंक्ति गंगा के स्वर्ग से नीचे उतरने पर किए गए विलाप के उत्तर में श्री हरि विष्णु के दिए गए एक आश्वासन के तौर पर है। पुराणों में कहा गया है की कलियुग में पाप, अन्याय, अत्याचार और अधर्म इतना बढ़ जाएँगा कि किसी भी दैवीय रचना का अस्तित्व बनाए रखना मुश्किल होगा।
जिस गंगा के किनारे प्रदूषण और अशुद्धता को वर्जित किया गया था उसमें विकास के नाम पर मानव मल-मूत्र से भरे नाले, कारखानों के असुद्ध जल, औद्योगिक कचरा तो कई दशको से मानव सभ्यता प्रवाहित कर ही रही थी और अब रही सही कसर युगों युगों से अविरल बहती पतित पावन गंगा के अविरल प्रवाह को बाँध कर गंगा की नयी पहचान गंग नहर के रूप में देकर कलयुगी भगीरथो के द्वारा किया जा रहा है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार किसी भी नदी में प्रदूषण फैलाना अधर्म या पाप है जिसका पालन कर हमारे पुरखो ने न केवल गंगा वरन अन्य नदियों की पवित्रता सदा बनाए रखा परन्तु आज प्रदूषण फैलाने और पर्यावरण संतुलन बिगाड़ने के तौर पर आधुनिक सभ्यता उस अधर्म को जोर-शोर से कर रही है।
कहते है की 20वीं सदी के शुरू में हरिद्वार में जब गंग नहर बनाने का काम शुरू हुआ तब कलियुग के पाँच हजार साल पूरे हो गए थे।
कैसी विडम्बना है कि जिस गंगा के जल को पहले मरते समय मुह डाला जाता था कि शरीर छोड़ने वाली आत्मा इस संसार के मोह-माया के बन्धनों से मुक्त हो भव-सागर के पार हो जाय आज उसी गंगा के हरिद्वार से लेकर गंगासागर तक के जल को अगर स्वस्थ व्यक्ति भी शायद पी ले तो उसकी आत्मा निश्चित तौर पर इस संसार से मुक्त हो जाने को मजबूर हो जाएगी।
यही तो है कलियुग और कलियुग के भगीरथो का योगदान......
आज गंगा जल टनल नंबर एक , दो आदि से बहता है और परिणाम यह है कि आज संगम तट पर स्नान करने लायक जल भी आम दिनों में नहीं रहता है और जैसे पुराणो में वर्णित कथा के अनुसार भागीरथ की तपस्या से खुश होकर शंकर ने अपनी जटाओं से गंगा की एक धारा धरती पर छोड़ी थी उसी तरह आज उत्तरांचल की आधुनिक सरकार जब अपने बंधो के पट खोंलती है तो पुनः नाम मात्र की गंगा (पतित पावनी गंगा को केवल पतित गंगा बना दिया गया है) की एक धारा कुछ समय के लिए संगम तक फिर आ जाती है वरना तो उसके खाली प्रवाह मार्ग में नालो का जल ही बहता रहता है।
और गंगा ही क्यों हमने आज किस नदी को बख्सा है ..........
ज़रा यमुना की बात हो जाय
ज़रा यमुना की बात हो जाय
कहते है की जब भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था तो यमुना में कालिया नाग रहता था जिसका जहर इतना विषैला था कि पूरी यमुना काली हो गयी थी, उसके आसपास इंसान तो इंसान यमुना से निकलती जहरीली गैस से परिंदे भी दम तोड़ देते थे मगर भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को जाने को मजबूर करके यमुना को फिर से पावन कर दिया था ।
हालांकि मैंने अपनी वर्त्तमान आँखों से उस जमाने की विषैली यमुना को नहीं देखा था मगर कुछ वर्षो पहले जब मथुरा गया और मथुरा के विवादित जन्म भूमि परिसर के निकट मेरे मासा ने मुझे यमुना में स्नान करने या कम से कम उसके जल से आचमन करके पुन्य कमाने के अवसर की याद दिलाई तो उस काली यमुना को देख कर मुझे लगा की पुराना कालिया नांग अपने भरे पूरे परिवार के साथ यमुना में निवास करने के लिए फिर से आ गया है और उसमे गिरते काले नालो के जल को देखकर प्रतीत हो रहा था की जैसे उस नाग की काली लपलपाती जिव्हा ने पूरे मथुरा शहर को अपने आगोश में ले लिया है।
हालांकि द्वापर की तरह इस कलियुग में मै यमुना के जल से बेहोस तो नहीं हुआ (शायद जहर की मात्रा सहन करने की आज के कलियुगी मानवों की योग्यता के कारण) मगर धर्म के प्रति अपने अगाध श्रधा के बावजूद भी मै यमुना में स्नान करने या कम से कम उसके जल से आचमन करके पुन्य कमाने की हिम्मत नहीं कर सका (शायद ये मेरे पाप का फल था या मै उस काले कलूटे विषैले जल से और ज्यादा पापी नहीं होना चाहता था .......! )
वैसे 'सरस्वती' विलुप्त हो चुकी है, 'छिप्रा' जिसके नाम लेंने भर से ही संसारियों के सारे पाप मिट जाते थे आज वही संसार से मिट गयी और जो अवशेष है वो आप भी जानते होंगे क्या है...!
तो सत्य ही कहा गया है कि कलियुग के पाँच हजार साल बीतने पर गंगा पृथ्वी से चली जाएगी और हो भी क्यों ना अब तो गंगा पुत्र भीषम भी इस संसार में नहीं है जिनके मोह में वो धरती पर रहें ।
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