हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

वक्त..

कुछ वक्त की है तस्वीर यही ,
कुछ मेरी भी तक़दीर यही ।
कुछ वक्त की है मज़बूरी भी ,
कुछ मेरे लिए जरुरी भी ।

कुछ वक्त की है तकरीर यही
कुछ मेरी भी तक़दीर यही ।
कुछ वक्त की खानापूरी है ,
कुछ मुझसे उसकी दूरी है ।

कुछ वक्त यहाँ नासाज सा है ,
कुछ राग अलग मेरे साज का है ।
कुछ वक्त मेरा नाराज भी है ,
कुछ मैंने छुपाया राज भी है ।

कुछ वक्त मुझे अजमाता है ,
शायद वह मुझे तपाता है ।
जो भी हो यह वक्त मेरा है,
जो नही सनातन रह पाया है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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