हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 27 मई 2011

कौन हो ?

देख कर तुमको सदा  , 
मैं सोंचता हूँ कौन हो ?
अपनो से लगते मुझे ,
फिर भी नहीं तुम पास हो ।

क्यों देखकर तुम्हे सामने ,
मै भूल जाता स्वयं को भी ।
फिर नजर के सामने कुछ ,
और नहीं टिकता कभी ।

पर यूँ ही कब तक चलेंगे ,
अंजान से हम दोनों ही ।
है अभी मौसम सुहाना ,
चलो कर ले परिचय ही । 

जाने कब किस मोड़ पर ,
राह अलग हो जाये फिर ।
पर जहाँ तक साथ है क्यों ,
अंजान से चलते हैं फिर ?


 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

बुधवार, 25 मई 2011

चंद लम्हे प्यार के...

चंद  लम्हे  प्यार   के ,  जी कर देख ले यहाँ मुसाफिर ।
कब रैन-बसेरा  खाली  कर ,   जाना पड़े तुझे मुसाफिर ।

जो आया है वो जायेगा , कोई अमर नहीं हो पायेगा ।
बस   शेष   रहेगी   यादें कुछ  ,  बाकी सब मिट जायेगा ।

पल   दो पल का जीवन है ,  कुछ पल ही रह पायेगा ।
बिना प्यार के लम्हों के ,   ये जीवंत कहाँ हो पायेगा ।

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मंगलवार, 17 मई 2011

दाग भी आजकल अच्छे है

किसी ने क्या खूब कहा है ...
"मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ, वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं.. !"

खैर दाग भी आजकल अच्छे है... तो 
चाहतो की जब हदों से , 
पार हम जाने लगे ।
नींद में भी आपका , 
जब नाम दोहराने लगे ।
यूँ देख कर मेरे हाल को , 
जब लोग कतराने लगे ।
छोड़ कर मुझको अकेला , 
अब आप भी जाने लगे ?

आपके एतबार पर , 
मैंने छोड़  दी पतवार भी ।
अब जब मजधार में आ गए , 
कैसे छोड़ दें हम प्यार भी ।
 अब तो चाहे पार हों , 
या डूब जाएँ हम यहाँ ।
चाहतो की सब हदों को , 
हमें पार करना है यहाँ ।।

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अनुगामी...

आसान नहीं अनुगामी बनाना ,
निज चोला बदलना पड़ता है ।

जीवन के जाने कितने ,
आयाम बदलना पड़ता है ।

फिर कंठ भले ही अपना हो ,
शब्द बदलना पड़ता है ।

भाषा चाहे जो बोलें ,
भाव बदलना पड़ता है ।

भुलाकर अपनी निज सत्ता ,
आचरण बदलना पड़ता है ।

हम बनते है अनुगामी जब ,
जीवन को बदलना पड़ता है ।


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शनिवार, 14 मई 2011

ना जाने कब आएगा.... HAPPY MAN DAY"

प्यारे साथियों
आज बस आप सभी से थोडा हँसी मजाक.......

कल रात मेरे एक मित्र ने अपनी व्यथा मेरे पास एस.एम्.एस से भेजी ...
और बात ही कुछ ऐसी थी कि न चाहते हुए मुझे  भी उनके दुःख में शरीक होना पड़ा , 
तो सोंचा कि क्यों न आप में से ज्यादातर को दुखी कर दूँ , 
हालाँकि कुछ लोग जिनकी गिनती मर्दों में नहीं होती उन्हें यह खुश होने का भी अवसर देगा ....

तो 
आईये शरीक होते है .... इस जनहित के दुःख में !

"बेचारा मर्द !

अगर औरत पर हाथ उठाये तो ... जालिम ।
अगर औरत से पिट जाये तो ,,. बुजदिल ।

औरत को किसी के साथ देख कर झगडा करे तो ... संकीर्ण मानसिकता का ।
और अगर देख कर चुप रह जाय तो ... बे-गैरत ।

घर से बाहर रहे तो ... आवारा ।
घर में रहे तो ... नाकारा ।

बच्चों को डांट दे तो ... जंगली ।
ना डांटे तो ... लापरवाह ।

औरत को नौकरी करने से रोंके तो ... शक्की मिजाज ।
ना रोंके तो ... बीबी की कमाई खाने वाला ।

माँ की माने तो ... माँ का चमचा ।
बीबी की सुने तो ... जोरू का गुलाम ।

अरे यारों ना जाने कब आएगा 
मर्दों की जिंदगी में ......

HAPPY MAN DAY"

मंगलवार, 10 मई 2011

तब तक..

रेत के इन टीलों को , हमें स्थायी बनाये रखना है ।
मिटा ना दे हवा इन्हें , ये व्यवस्था बनाये रखना है ।
रास्ते नित नूतन बनाकर , प्रगति बनाये रखना है ।
बचाकर पहचान अपनी , अस्तित्व बनाये रखना है ।
अपने कदमों के निशां को , सुरक्षित बनाये रखना है ।
मंजिलो पर विजय पताका , लहराती बनाये रखना है ।

हालाँकि आसान नहीं , रेत पर यूँ खेलना ।
भुलाकर अपने दर्द को , औरों को सहेजना ।
बंजर मरुभूमि पर , नयी कोपलों को उगाना ।
आँसुवो को जमा कर , नखलिस्तान नया बनाना ।
लेकिन जब तक काल-चक्र , परिवर्तन नहीं लाता ।
तब तक ये मरुभूमि ही , अपनी है भाग्य विधाता ।

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सोमवार, 2 मई 2011

तलब

चाहतें हद से जब गुजरने लगी , 
न चाहते हुए भी नजर तुझपे पड़ने लगी ।
प्यासा था मै बहुत पहले से साकी,
अब दिल में भी तड़फ उठने लगी ।

यूँ तो खायी थी कसम न आयेंगे इधर , 
पर कदम मेरे खुद आ गए तेरे पास ।
अब आ ही गए हैं तो पिला दो मुझे , 
फिर करते रहना तुम बाकी हिसाब ।

पहले जब आकर पिया था यहाँ ,
मैंने माँगी थी तुमसे केवल शराब ।
गया जब घर और उतरा उतरा नशा ,
मैंने जाना कि उसमे मिली थी शबाब ।

तो आ ही गए हम अब फिर से यहाँ ,
आज नज़रों से ही तुम पिला दो शराब ।
बस आँखों ही आँखों से पिलाना मुझे ,
जाम छलके नहीं ना ही टूटे गिलास ।

कहो तो खुदा की मेहर गिरवी रखूँ ,
भरोसा रखो मुझ पर साकी तुम आज ।
आँखों ही आँखों से मै पीता रहूँगा ,
छुऊँगा नहीं जाम हाथों से आज ।

तमन्ना है मेरी यही बस ओ साकी ,
जो पहले पिया था फिर से पिला दो ।
कहो तो दुबारा नहीं आऊँगा मै ,
बस अबकी छका कर मुझे तुम पिला दो ।।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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