देख कर तुमको सदा ,
मैं सोंचता हूँ कौन हो ?
अपनो से लगते मुझे ,
फिर भी नहीं तुम पास हो ।
क्यों देखकर तुम्हे सामने ,
मै भूल जाता स्वयं को भी ।
फिर नजर के सामने कुछ ,
और नहीं टिकता कभी ।
पर यूँ ही कब तक चलेंगे ,
अंजान से हम दोनों ही ।
है अभी मौसम सुहाना ,
चलो कर ले परिचय ही ।
जाने कब किस मोड़ पर ,
राह अलग हो जाये फिर ।
पर जहाँ तक साथ है क्यों ,
अंजान से चलते हैं फिर ?
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
4 टिप्पणियां:
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
खूबसूरत अभिव्यक्ति ..परिचय हुआ ?
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..अंतिम पंक्तियाँ तो लाज़वाब..बहुत सुन्दर..
कोमल भाव....सुन्दर रचना
एक टिप्पणी भेजें