आसान नहीं अनुगामी बनाना ,
निज चोला बदलना पड़ता है ।
जीवन के जाने कितने ,
आयाम बदलना पड़ता है ।
फिर कंठ भले ही अपना हो ,
शब्द बदलना पड़ता है ।
भाषा चाहे जो बोलें ,
भाव बदलना पड़ता है ।
भुलाकर अपनी निज सत्ता ,
आचरण बदलना पड़ता है ।
हम बनते है अनुगामी जब ,
जीवन को बदलना पड़ता है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
आपके ब्लॉग पर आना अच्छा रहा।
यह चिड़िया तो बड़ी प्यारी है।
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