हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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गुरुवार, 28 जुलाई 2011

मेरे मुखौटे...

कुछ लोग मुखौटे पहन रहे ,
कुछ लोग मुखौटा जीते हैं ।
जो लोग जमीं को तरस रहे ,
वही लोग आसमां जीते हैं ।

कुछ लोग सियासत करते हैं ,
कुछ लोग सियासत पहन रहे ।
कुछ लोग नजाकत रखते हैं ,
कुछ लोग नजाकत  ओढ़ रहे ।

यूँ हम भी अपने चहरे पर , कुछ एक मुखौटे रखते हैं ।
जिसने जैसा चाहा हमसे , वैसा ही हम उसे दिखते हैं ।
क्यों जिद करते हो तुम मुझसे, मेरे किसी और ही चेहरे को ।
तुम अभी गुलाब के आदी हो , मत माँगो के कमल फूलों को ।
इसको ही तो कहता हूँ  मै , सज्जनता सादगी मेरे जीवन की ।
एक बार जो तुमने देख लिया, वह मुखौटा न बदलेगा पुन: कभी ।

तुम चाहे जो भी नाम रखो , मै तो गिरगिट कहता हूँ ।
जो भी जैसी शाख मिली , मै वैसा ही रंग रखता हूँ ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

वर्तमान अटल है...

शांत रहो....
                                         'नियति को स्वीकार करो'
क्योंकि...
                               'जो हो रहा है वह पूर्व नियोजित है...'
और.....
                        'जो नहीं हो रहा है वह तुम्हारे वश में नहीं है....'
तो
     अगर कर सकते हो तो अपने आप को इस होने और न होने के द्वन्द से मुक्त रखो और दूर से केवल दर्शक की भांति मजा लो ।
और
       अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम चक्की के दो पाटो के मध्य उसी प्रकार पिस जाओगे जैसे 'आजकल' घुन के साथ गेंहू पिस जाता है ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

बुधवार, 27 जुलाई 2011

मेरा मयखाना...


मत रोको मुझे इस पर अभी , उस पार मेरा दीवाना है ।
इस पार क़यामत बरस रही , उस पार मेरा मयखाना है ।

हो रहा समय अब पूजा का , क्यों डाल रहे हो विघ्न अभी ।
इससे पहले मेरी नजर झुंके , मुझे शीश नवाना है अभी ।
नजरो से नजर मिलाकर , मुझे साकी से कुछ कहना है ।
अपने अंतर्मन में उसको , पुरजोर बिठा  कर रखना है ।

वो देखो बँटने लगा है जाम ,  और छलक रहे कुछ पैमाने ।
है तड़फ उठी मेरे दिल में भी , मुझे बुला रहे मेरे मयखाने ।
मै नहीं पियक्कड़ उनमे सा , जो पीकर राह में गिरते हैं ।
ज्यों-ज्यों मै पीता जाता हूँ , त्यों-त्यों मै होश में आता हूँ ।

जो पीने वाले हैं प्रतिदिन , वो प्रतिपल होश में रहते हैं ।
जो पीते हैं कभी यदा-कदा , वो ही मदहोशी में गिरते हैं ।
और 'मय' तो यारों चीज है वो , जो 'मै' को भुला मेरी देती है ।
'प्रियतम' की नजरो में मुझको , 'अमृत' का मजा वो देती है ।

मत रोको मुझे इस पार अभी , उस पार इबादत करनी है ।
इस पार बसे सब काफ़िर हैं , उस पार मोहब्बत करनी है ।

उस पार मै जाकर पी आऊ , इस पार मै तौबा कर लूँगा ।
इस रात मै छककर पी आऊ , कल दिन में तौबा कर लूँगा ।
तौबा-तौबा-तौबा है मुझे , इस बार न तौबा तोडूंगा मै ।
आज पिऊँगा नजरो से , न जाम छुऊंगा ओंठो  से  मै ।

जो आज मिली ना नजर मेरी , कुछ पल में ही मर जाऊँगा ।
बस रहे सलामत मधुशाला   , बाकी तो मै जी जाऊँगा ।
न रूठे मेरा साकी मुझसे , न मुझसे नजर हटाये कभी ।
न केश समेटे अपना वो , न मेरे ओंठो को तडफाये अभी ।

एक नजर देख ले मुझको वो , फिर 'मय' की मुझे जरुरत क्या ।
एक बार पिला दे छककर के , फिर 'मै' की मुझे जरुरत क्या ?
उस पार पहुँच बस जाऊ मै , इस पार लौट के ना आऊँगा ।
जिस पार मिले महबूब मेरे , उस पार ही मै रह जाऊँगा ।

मत रोको मुझे इस पर अभी , उस पार मेरा परवाना है ।
इस पार क़यामत बरस रही , उस पार इबादतखाना  है ।

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सोमवार, 25 जुलाई 2011

प्रेम के विराग..

चाहा था तुम्हे चाहूँगा तुम्हे , जब तक रहूँगा इस जग में ।
ये प्यार नहीं मेरा धोखा है  , ये प्यार है मेरी तपश्चर्या ।

तुम चाहो तो मुझे भुला भी देना , मै तुमको भुला नहीं पाऊंगा ।
जो प्यार मै तुमसे कर बैठा , वो प्यार न दूसरा  कर पाऊंगा ।
तुम्हे भुलाकर इस जग को , अपना मुख ना दिखालाऊंगा ।
अपने प्रेम की बगिया में मै , कैसे किसी और को लाऊंगा ।
जब प्रेम किया है मैंने तुमसे , मरते दम तक निभाऊंगा ।
अपने मन के अरमानो में , बस तेरे ही सपने सजाऊंगा ।

प्रेम नहीं कोई राज-पाठ , औरों को मै जिसे सौंप दूं ।
ना ही ये जागीर कोई , जिसका मै बंटवारा कर दूं  ।
प्रेम नहीं कोई वस्त्र है , जब चाहूं नया धारण कर लूं ।
ना ही प्रेम केंचुली है , जब चाहूं इसे छोड़ कर चल दूं ।
ये तो मेरी हकीकत है , और दिल की मेरे निशानी है ।
यही मिटा दूं मै दिल से , फिर क्या मेरी शेष कहानी है ।

प्रेम नहीं पग-पग पे होता , इसका भी अपना सानी है ।
मानव जीवन जैसी ही , इसकी भी जन्म कहानी है ।

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रविवार, 24 जुलाई 2011

कुछ और ही लिखा जाना आज किस्मत में है शायद...

उफ़ बड़ी देर से कुछ लिखना चाह रहा हूँ... शब्द भी मेरे जेहन में है , भाव भी मेरे मन में है पर उसे धरातल पर आने से न जाने कौन सी बात रोंक दे रही है....
चलिए कुछ और ही लिखा जाना आज किस्मत में है शायद... तो यही सही
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जीवन में बहुत सी बाते है , होती कुछ और दिखाती कुछ है ।
जीवन के बहुत से राग है , बजते कुछ और लगते कुछ है ।
यह तो है हम पर ही निर्भर , कैसे सुने और देखें उनको ।
है यदि इच्छा सच की तुमको  , दिल से सुनो मन से देखो ।
दिल जो कुछ भी सुनता है , वो सदा हकीकत होता है ।
मन भी जो करता महसूस , वह कपट नहीं हो सकता है ।
नहीं कहोगे तब तुम ये , दिया है तुमको जग ने धोखा ।
और कहूँ क्या तुमसे ,  बस बनाना नही तुम कोई सोखा ।

जीवन में बहुत सी बाते होती , जो होकर भी नहीं होती जैसे ।
जीवन के बहुत से रंग है ऐसे , जो होकर भी बदरंग हो जैसे ।
यह तो है हम पर निर्भर , हम कब क्या और कैसे उन्हें देखें ।
है अगर भूंख सच्चाई की , हो अजर अमर अविनाशी देखें ।
है अजर अमर अविनाशी जो , सदा तुम्हारे अन्दर रहता है ।
जो भी करता वो महसूस , सत्यम शिवम् सुन्दरम होता है ।
नहीं कहोगे तब तुम ये फिर , कुछ तुमसे छिपाकर होता है ।
और कहूँ क्या मै अब तुमसे , तुममे भी तो  ईश्वर रहता है ।


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पाँच बाते..."आर्ट ऑफ़ लिविंग "

पाँच बाते जो आज श्री श्री रविशंकर जी के "आर्ट ऑफ़ लिविंग-२२,२३,२४ जुलाई २०११" में भगवान/आचार्य रजनीश (ओशो) के इस हमसफ़र ने जानी...

१. "विरोधाभाषी मूल्य एक दुसरे के पूरक होते है ।" ....इन्हें व्यर्थ अलग अलग करने का प्रयास न करें .......।

२. "वर्तमान अटल है।" ....भूत और भविष्य काल में न भटके , वर्तमान को स्वीकार करे....।

३. "दूसरों के गलतियों में नीयत या इरादा न ढूंढे ।" ....अपने को उसके स्थान पर रख कर सोंचे....।

४. "व्यक्ति और परिस्थितिया जैसी है वैसा स्वीकार करें । " ....पूर्णता से स्वीकार करने के बाद ही आप बेहतर कुछ कर सकते है....।

५. "दूसरों के मंतव्यो का शिकार न बने ।" ....प्रतिक्रिया के पहले अपने दिमाग का प्रयोग करे...।


हो सके तो कभी इसे भी अजमा कर देखिएगा .... (द्वारा स्वामी महेश गिरी जी) 

" किसी टोल टैक्स वाले बैरियर पर जब कभी आप अपनी गाड़ी रोंको और पैसा लेने वाला आये तो....

उसे अपनी गाड़ी के साथ अपने पीछे लगी किसी भी अंजान गाड़ी का भी पैसा अपने पास से दे दे !और साथ ही टोल टैक्स वाले को बता दे कि वो पीछे लगी गाड़ी से पैसा न ले ... बस उसे इतना बता दे की उसकी गाड़ी का पैसा मिल गया है बदले में वो बस एक बार मुस्कुरा दें ....!

इसके बाद एक पल के लिए भी आप वहां न रुके और अगर पीछे वाली गाड़ी आपको ओवरटेक करने का प्रयास भी करे तो भी उससे तेज चलिए और उसे अपना चेहरा न देखने दीजिये......और उसे पुरे रस्ते यूं ही हैरान रहने दीजिये कि किसने और क्यों उसका पैसा दिया है.......

फिर देखिये कमाल...

जब जब आप या वो अंजान गाड़ी वाला किसी भी कारण से दुखी होगा और उस पल आप दोनों में से किसी को भी ये घटना यद् आएगी आप वापस प्रशन्न हो जायेगे.... "

शनिवार, 23 जुलाई 2011

कैसे कहूँ...ओ हमसफ़र

ओ हमसफ़र , दो पल को ठहर...........

मत पूँछ अभी तू हाल मेरा , हम हाल बता ना पाएंगे ।
झूंठ बोलना आता नहीं , और सच को कह नहीं पाएंगे ।
कैसे कहें हम तुमसे अभी , जो हाल मेरे दिल का है ।
मै तुमसे दिल हूँ लगा बैठा , या दिल में तुझको बसा बैठा ।
कुछ पल का मुझको मौका दो , समझ सकूँ अपने दिल को ।
यह सचमुच खेल निराला है , या फिर से खेल पुराना है ।
यदि खेल निराला है साथी , तो रचनी पड़ेगी परिभाषाएं ।
यदि खेल पुराना है साथी , तो गढ़नी पड़ेगी मर्यादाएं ।

फिर जब तक मै जान ना लू, क्या हाल तुम्हारे दिल का है ?
मै कैसे कहूँ कुछ शब्दों में , क्या हाल हमारे दिल का है ।
अब तो तुम ही मदत करो , कुछ कदम चलो संग और मेरे ।
हो सकता है मै जान सकूँ , क्या हाल हमारे दिल का है ।
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शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

वो तेरा सच ये मेरा सच....

जो कहा तुमने अभी , सच होगा मै मानता हूँ ।
आपकी निरपेक्षता  को , बा-अदब पहचानता हूँ ।
बोले बिना कटु शब्दों को , सच से परिचय करवाते हैं ।
लाग लपेट में पड़े बिना , अपनी बात आप कह जाते है ।
अफसोस आपको बातों को , सदा सत्य मान नहीं सकता ।
मज़बूरी है कुछ मेरी भी , मै सत्य उधार नहीं ले सकता ।

कुछ मुझको भी मोहलत दो , स्वयं सत्य को मै पहचान सकूँ ।
इस सत्य असत्य के अंतर को , मै अंतर-मन से जान सकूँ ।
हाँ ये सत्य अभी पराया है मै, इससे रिश्ता नहीं जोड़ पाया हूँ ।
मुझे अनुचर बनना आया नहीं , बस अनुरागी ही बन पाया हूँ ।
सत्य वही है इस जग में , स्वयं जान सकें हो जिसको आप ।
बाकी सब है केवल कल्पना , क्यों नहीं जानते अब तक आप ।

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गुरुवार, 21 जुलाई 2011

जाने कैसे कब किस पल.....

जाने कैसे कब किस पल हम , दिल अपना तुमको दे बैठे ।
प्रीत लगाकर तुमसे अपनी , चैन गवां हम अपना बैठे ।
शांत नदी की धाराओं सी , मेरे मन की लहरें बहती थी ।
गिराकर कंकर प्रेम का तेरा , मैंने उसमे भंवर बना दी ।
अब तो बस ये हाल हमारा , तुझ बिन दिल बेहाल हमारा ।
तेरी लगन लगी मुझे ऐसे , भटक गया दिल कहीं हमारा ।

चोरी-चोरी, चुपके-चुपके , जब तुझसे नैन मिलाता हूँ ।
तेरे रूप की मादकता में , अपना होश गँवाता हूँ ।
रातें तो बस रातें है तू , दिन का भी मेरे ख्वाब बनी ।
सोते जागते हर एक पल , तू अब मेरा अरमान बनी ।
तेरे प्रेम की माया ऐसी ,  अब बस तू ही है मुझको दिखती ।
इतना सब हो जाने पर भी , कैसे लिखूं अब तुझको चिठ्ठी ।

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सोमवार, 18 जुलाई 2011

एक सीख जो हमें सिखा गयी...

एक दिन यू ही सोंचा मैंने , क्यों न प्रभु का ध्यान धरे ।
प्रभु में अपना ध्यान लगाकर , क्यों न धर्म का काम करें ।
प्रीति लगाकर प्रभु में अपनी , उसको अपना मीत बनाऊ ।
मीत बनाकर उसको अपना , जग में थोड़ा पुन्य कमाऊ ।

इसी आस को लेकर मन में , पहुँच गया एक जंगल में ।
अपनी चादर वहां बिछाकर , ध्यान धरा मैंने प्रभु में ।
यूँ कुछ पल ही बीता होगा , मुझे बिछाये अपना आसन ।
आया एक पागल दीवाना , और रौंद गया मेरा आसन ।

यह देख मुझे जो आया क्रोध , मैंने उसको धर-रपटाया     ।
पकड़ के गर्दन उसकी मै , वापस आसन तक ले आया ।
मैंने पूंछा  उसे पटककर , क्यों दिखी नहीं तुझे मेरी चादर ।
या फिर तुझको आता नहीं , करना औरों का आदर ।

सुना जो उसने हँसा जोर से , फिर बोला वह मुझे रोंक कर ।
मै भी दिवाना तू भी दिवाना , यही लगता है मुझे तुझे देखकर । 
मै हूँ नश्वर नारी का दीवाना , फिर भी मुझको जग नहीं दिखता ।
तू तो है उस प्रभु का दीवाना , फिर भी तुझको चादर दिखता ?

समझ गया मै उसकी बात , प्रभु ने मारी मेरे अहम् पे लात ।
व्यर्थ था  आगे करना उससे , अब किसी तरह को कोई बात ।
प्रभु की लगन अगर है दिल में , क्यों हम करे दिखावा जग में ।
क्यों भाग कर जाये हम जग से , रहें प्रेम से क्यों न जग में ।


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रविवार, 17 जुलाई 2011

कैसे कहें हम तुमसे प्रिये

कैसे कहें हम तुमसे प्रिये , क्या खोया है तुमको पाकर ।
नींद गयी मेरी रातों को , और चैन गँवाया तुमको पाकर ।

कल तक मै बैरागी सा , था प्रभु का ही बस अनुरागी ।
जब से जागा राग तुम्हारा , भूल गया  मै जग बाकी ।
कल तक होते थे दिन मेरे , रातें भी सब मेरी थी ।
मन भी पूरा मेरा था , और बातें भी सब मेरी थी ।

आज हुआ सब जगत तुम्हारा , शेष रहा न कुछ भी मेरा ।
लो मिटा दिया अंतर मैंने , अब क्या है मेरा क्या है तेरा ।

अब तो केवल याद तुम्हारी , प्रतिपल मुझे सताती है ।
तेरे कदमो की आहट ही , अब  हर पल मुझे सुनाती है ।

चाह रहा हूँ बस इतना ही , कभी याद तुम्हे भी मै आऊँ   ।
अधिकार नहीं बस थोड़ी सी , जगह तेरे दिल में पाऊँ   ।

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शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

मन की गाँठें....

आसान नहीं मानव मन की , सारी गाँठो का खुलना ।
खुली किताब सा रखकर उनको , सारे अंतर्द्वंद समझना ।
कुछ भाव सरल होते है इतने , जैसे हों छुई-मुई की डाले ।
आगे बढ़कर पकड़ सके , इससे पहले स्वयं संकुचित हो जाते । 
कुछ तथस्त भाव की गाँठें हैं , मज़बूरी उनकी रहना तथस्त ।
क्या सच है क्या झूंठ है इसको ,  पहचान नहीं पाते अभ्यस्त ।
कुछ गाँठे हैं शंकाओ की , हर बात में वो प्रश्नचिह उठाती ।
सभी व्यक्तियों के चरित्र पर , वो एक धब्बा सदा लगातीं ।
कुछ गाँठे होती जटिल बहुत , मन को वो उलझाती हैं ।
अपने संग संग औरो को भी , भ्रम में सदा फँसाती हैं ।
एसी ही कुछ गाँठो का , मैंने सोचा था विश्लेषण करू ।
हो सके अगर अपने मन की , गाँठो का भी दर्शन करू ।
लेकिन शायद मन की गाँठे , संगठित बहुत ही होती हैं ।
कोई इनका करे विश्लेषण , यह बात इन्हें अखरती   है ।
आगे बढ़ कर सभी कपाट , फ़ौरन बंद वो करतीं है ।
व्याकुल करके अंतर्मन को , स्वयं को सुरक्षित करतीं है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

अंतर्मन...

जाने कितने भाव छिपे हैं , मेरे अंतर्मन में आज ।
सभी प्रतिक्षा करते है , खुल कर आने को बस आज ।
इसमे से ही भाव कोई अब , वीणा बन कर झनकेगा ।
या फिर कोई भाव अचानक , लावा बनकर दहकेगा ।
कुछ मन की व्यथा बताएँगे , कुछ मन में ही रह जायेंगे ।
कुछ भाव ख़ुशी का लायेंगे , कुछ दिल को बहुत दुखायेंगे ।

कुछ अपना तुम्हे बनायेंगे , कुछ अपनो को बिसरायेंगे ।
कुछ ज्वाला बनकर उभरेंगे , कुछ गीली लकड़ी सा सुलगेगें ।
कुछ आंसू बनकर टपकेंगे , कुछ अंत समय तक सिसकेगें ।
इनमे से ही भाव कोई , अपने संबंधो की परिणित होंगे ।
सम्मानजनक जो भाव लगे , तुम उसको अपना लेना ।
बाकी तो बस भाव ही हैं , उनको यूँ ही बिसरा देना ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

मैं तुम्हे कितना प्यार करता हूँ.....

लीजिये कई दिनों के बाद आज पुन: आप सभी के समक्ष गोविन्द जी के सौजन्य से एक रचना प्रस्तुत है...

मैं तुम्हे कितना प्यार करता हूँ
कोई जान नहीं पायेगा
ये राज़ तो मेरे मरने के साथ ही खत्म हो जायेगा।

ख़त्म होऊंगा मैं और ये राज़
खत्म न होगा मेरे दिल का प्यार
मेरा प्यार तो अमर होके सदा तुम्हरे साथ रह जायेगा।

सजा लेना तुम अपना आशियाँ
कर लेना अपनी दुनिया आबाद
कम से कम मेरे रूह को चैन मिल जायेगा।

गम न करना मेरे जाने पे
आंसू न बहाना याद आने पे
मुस्कुरा देना तुम देखकर में भी कही मुस्कुराऊंगा।

तुम मिले किसी और के होकर
किस्मत ने ही दी है ठोकर
मेरा प्यार मेरे दिल का राज़ बना रह जाएगा।
मैं तुम्हे कितना प्यार करता हूँ
कोई जान नहीं पायेगा.............

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★ गोविन्द पांडे ★彡

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

द्वन्द..

भटक रहा क्यों मन मेरा , मै जान न पाता हूँ स्वयं ही ।
मन के द्वन्द बढाकर मै , क्यों हर्षित होता हूँ स्वयं ही ।
मै स्वयं ही बनाता भंवरे हूँ , फिर नाव फँसता उसमे मै ।
लाभ हानि की बातो को , फिर व्यर्थ उठता मन में मै ।
खोज रहा उन भावो को , जो मुझको आहत कर जाते है ।
मेरे मर्मस्थल पर जो , अपनी छाप छोड़ कर जाते हैं ।
इसका कोई अर्थ नहीं , वो आहत कितना करके गए ।
क्या मूल में भावो के , क्या वो मुझसे कह के गए ।

मै तो बैठा था पहले से , किसी कारण से कुछ जला-भुना ।
जो बही अचानक पुरवाई , फिर आग बढ़ गयी कई गुना ।
मै खोज रहा था रेतीले , टीलो पर पिछले पदचिन्हों को ।
एक हवा की आहट ने आकर , भुला दिया सब चिन्हों को ।
क्या है सच क्या झूँठ यहाँ , मै स्वयं ही जान न पाता हूँ ।
मन के इस भटकाव को मै , क्यों रोंक नहीं अभी पाता हूँ ।
फिर देता हूँ विस्तार निरंतर , अपने मन के द्वंदों को ।
देख रहा हूँ बनते बिगड़ते , अपने ही प्रतिबिम्बों को ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

उफ़ आखिर कब तक...


लीजिये भारत की व्यावसायिक राजधानी मुम्बई पर एक बार फिर से हमला हो गया...
अभी कसाब हमारा अतिथि बना ही हुवा है , अफजल ससुराल में रहने जैसा मजा उठा ही रहा है की मीडिया को एक और ब्रेकिंग न्यूज मिल गयी... सीरियल ब्लास में फिर दहली मुम्बई

उफ़ आखिर कब तक...

कब तक हम सब बस नपुन्सको सा तमाशा देखते रहेंगे...
कब तक बार-बार होने वाले धमाको के बाद हमारे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री वही रटा-रटाया बयान देते रहेंगे कि "यह आतंकियों की सोंची समझी शाजिस है ? " अबे क्या बिना सोंचे समझे कोई इतना बड़ा ब्लास्ट तुम्हारे घर में घुस कर प्लांट कर सकता है ?
कब तक सांप निकल जाने के बाद हम खाली-पीली सारे देश में रेड एलर्ट जारी करके लकीर पीटने का तमाशा कर के जनता को बहलाएँगे ?
मीडिया चिल्ला रहा  है "कोई कुछ भी कर ले मुम्बई वासियों की एकता कोई नहीं तोड़ सकता है.." तो अंचार बनाकर छत पर सुखाने को रखो  एकता का... जब उनके मन में आता है तब घर में घुस कर मार जाते है और हम बस नपुन्सको सा अपनी एकता और अपनी जिन्दादिली पर tali बजा-बजा कर खुश हो लेते है ! 

इस से बेहतर तो ८० साल के बुजुर्ग अटल बिहारी ही थे जिन्होंने जन्मजात हरामियो के देश की सीमा पर कम से कम अपनी सेनाये तो चढ़ाकर उनको सबक सिखाने की तो ठानी तो थी... और एक बार पूरे विश्व कि सांसे तो रोंक दी थी ! 

यह सरकार तो बस खोखली बाते ही करती है... कभी शर्म-अल-शेख में मुह की खाती है , तो कभी अमेरिका के तलुवे चाटती नजर आती है !

गृह मंत्री कहते है कि हमारे पास एसी कोई व्यवस्था नहीं है जो पूर्व सूचना दे ??
गिनने पर आओ तो भारत में काम करने वाली इंटेलिजेंस एजेंसियों की पूरी सूची कम से कम एक पन्ने में समाएगी मगर सब बे-ताल नाच रहे है !और अपनी बीरता के डंका पीटने वाली बीर मराठा पुलिस के मुखबिर क्या खाली धंधेबाजो की खोज-खबर रखती है ? उसे क्यों नहीं कुछ सूंघने को मिलता है ?
और लोकल इंटेलिजेंस ? उनकी हालत क्या लोकल चाय जैसी हो गयी है ?



अरे हमारी राष्टीय सुरक्षा एजेंसिया जैसे एन.आई.ए. , आई.बी. और मिलिट्री इंटेलिजेंस के लोग क्या केवल तफरीह में मस्त रहते है ?

और क्या करती रहती है हमारी ' रा '  ? क्या उनके लोग पाकिस्तान में पिकनिक मना रहे हैं ....?
जबाबी कार्यवाही में क्यों नहीं वहां इससे बड़ा सीरियल ब्लास्ट प्लांट हो रहा है ?????? अगर दम है काउंटर इंटेलिजेंस में तो जाओ २४ घंटे में दहला कर दिखावो करांची और इस्लामाबाद की छाती...
और अगर कुछ नहीं हो सकता इंटेलिजेंस वालो से तो क्यों नहीं फिर से बोफोर्स तोपों का मुह वापस खोला जा रहा है ? अरे तोपे भले ही दलाली खा कर खरीदी गयी हों मगर जब वो गरजती है तो पाकिस्तानियों को अपनी माओ की कोख ही वापस याद आती है....

और पृथ्वी , अग्नि , अर्जुन आकाश क्या अजायबघर में रखने के लिए बनाये गए है ....?

बुधवार, 13 जुलाई 2011

अफसोजनक बात...


बस एक छोटी सी कहानी और तीन अफसोसजनक बातें...

         तो यारों आज बहुत दिनों बाद थोडा घुमावदार रास्तो पर तेज ड्राइव करने का मन था पर देर शाम हो चुकी थी और गोरखपुर शहर में ऐसा एक ही रास्ता है जो रामगढ ताल के किनारे किनारे सहारा स्टेट कि तरफ जाता है पर रास्ता सुनसान और अँधेरा होने के कारण उसे देर शाम कम ही लोग प्रयोग करते है ।

        पर घूमने का मन था तो चल पड़ा और रस्ते में अपने एक मित्र को भी ले लिया.. हालाँकि जब मै वास्तव में ड्राइव का मजा लेने लगता हूँ मेरे वाहन पर यदि कोई हमसफर है तो वो प्राय ईश्वर के चरणों में समर्पित होने लगता है (हा.हा.ह़ा, चलो कम से कम इस तरह तो वो भगवान को याद करते है) । पर अचानक सब मजा किरकिरा हो गया ।

         गाड़ी की हेडलाइट ने काम करना बंद कर दिया.. खैर इससे एक फायदा तो था कि उस सुनसान रास्ते पर विचरने वाले किसी राहजन को मेरा वाहन तब तक नजर नहीं आता जब तक मै उसके सामने से न गुजर जाता और वैसे भी उनसे मुझे कम ही डर लगता है ( क्यों यह अलग मामला है ) पर अँधेरे में अन्धो कि तरह गाड़ी चलाने का मेरा कोई इरादा न था तो मैंने हाइवे कि तरफ रुख कर लिया पर जैसे ही संपर्क मार्ग से मै हाइवे पर आया तो मुझे एक अधेड़ महिला रोड पर पड़ी नजर आयी जिसके दाये-वाये से कई ट्रक और कारे गुजर रही थी ।

       मै भी अपनी आदत का मारा घुमा लिया गाड़ी उसी तरफ यह देखने के लिए कि मामला क्या है ?, वह जीवित है या..... , पास पहुँचा तब तक एक बेचारा भलेमानुष साइकल सवार भी वही रुक गया और उसे हाथ से पकड़ कर जबरदस्ती रोड के किनारे खेंच कर करने लगा , तो मै आगे चल दिया । आगे भी लाइट बनने की  कोई व्यवस्था न देख कर मै वापस लौटने लगा तो देखता हूँ कि वह महिला फिर और ज्यादा बीच रोड पर लेती हुयी है, देख कर कलेजा मुह को आ गया कि तेजी से गुजरते ट्रको के  नीचे अब आयी कि तब आयी ? तत्काल तो वही नहीं रुक सका क्योंकि ट्रैफिक था पर थोडा आगे मेरी गाड़ी के ब्रेक फिर जाम हो गए और गाड़ी वापस घुमा कर उसके ठीक पास पहुँचाने का मै उपक्रम करने लगा । 
       
       मित्र महोदय थोडा घबराए और बोलो क्यों नाहक पंगा लेते हो , और अगर उसके पास पहुँचते पहुँचते किसी ट्रक का पहिया उसके ऊपर आ गया तो आँखों के सामने एक दर्दनाक मौत देखनी पड़ेगी। दूर से देखने पर महिला पूरी तरह से निर्जीव लग रही थी पर रोड पर किसी दुर्घटना के चिन्ह भी नहीं नजर आ रहे थे कि उसे निर्जीव मान लिया जाय। एक पल को तो मेरे मन में भी आया कि चलो जाने देते है जब महिला मरने पर ही उतारू है तो मई क्या करूँ, अभी कोई न कोई आएगा और उसे किनारे कर देगा पर फिर मन नहीं माना और मैंने १०० नंबर डायल करना शुरू किया मगर नंबर काम नहीं कर रहा था ........!!

तो सबसे पहली अफसोस जनक बात है .. आपको अचानक जरुरत पड़े तो 100 नंबर किसी काम का नहीं जबकि कुछ ही दिन पहले शहर में तमाम ढिंढोरा पीटा गया था कि अब ये नंबर तुरंत उठेगा जब और जहाँ आपको पुलिस की जरुरत हो तब और तहां मदत मिलेगी....।

और दूसरी अफसोसजनक बात.. आखिर कैसे मानवीय संवेदनाओ का इतना ह्रास हो रहा है कि बेकार पंगा लेने , अपने काम में व्यस्त होने या किसी भी अन्य कारण से एक पल के लिए ही सही हम किसी को मरने के लिए छोड़ कर आगे जाने का विचार करने लगते है ..!
तो फोन नहीं लग रहा था और अब तक  संवेदनाये वापस जग गयी थी तो अपने मित्र महोदय की असहमति को दर किनार कर मै उसे किनारे करने चल पड़ा। तब तक एक तेज रफ़्तार ट्रक अचानक उसके ठीक पहले रुका , चलो गनीमत थी कि ड्राइवर को दिख गया और उसके कारण दोनों साइड की ट्रैफिक अवरुद्ध हो गयी । और तभी पीछे से आ रही एक पुलिस बाइक भी आ गयी और उन्हें भी रोड पर पड़ी महिला नजर आ गयी । तो पुलिस वाले भी गाड़ी से उतरे और दूर से जायजा लेने लगे की वह जीवित भी है या मर गयी । मैंने उन्हें तफसील किया कि अभी कुछ देर पहले ही इसे किनारे किया गया था अब फिर से यह जबरदस्ती मरने के इरादे से बीच रोड पर लेटी है। इस बार इसका कोई पक्का इन्तिजाम करिए ।

और अब तीसरी अफसोसजनक बात ... आखिर घर वालो से झगडा करके मरने कि इतनी जिद क्यों ?
क्या क्रोध या हताशा में जान देकर चैन मिल जायेगा ?
और अगर मर कर भी चैन न मिला तो मरने वाला और उसका परिवार कहाँ जायेगा ?

शुभ रात्रि



मंगलवार, 12 जुलाई 2011

आधी रात..

आधा सच और आधी रात , कहाँ हो पाई पूरी बात ।
गगन में चाँद भी आधा है , और अभी जाने की है बात ।
कहो कब होगी पूरी बात , न जाने कब होगी मुलाकात ।
कहो कब वापस आऊ मै , रहे न दिल में कोई बात ।
अधूरी है जब तक मुलाकात , खटकती रहेगी मुझको बात ।
चैन से बीतेगी नहीं रात , अधूरी रहेगी जब तक बात ।

कहो तो रुक ही जाता हूँ , रात भर तुम्हे सताता हूँ ।
नींद कहाँ मुझको आयेगी , कहाँ तुम ही सो पाओगी ।
चलो मै रुक ही जाता हूँ , साथ मै तेरा निभाता हूँ ।
मिलाकर अपना आधा आज , बना लेते है कोई काज ।
कसक न रहे कोई दिल मै , समय है संग अभी अपने ।
कहाँ देखा है किसने कल , कहाँ कोई लौट के आया पल ।
 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

मनुष्य और भावनाएं..

भावनाए अगर न हों तो जटिलता , अगर हों तो जटिलता और इन्ही के कम,ज्यादा होने या न होने के बल पर ही चलती है ये सारी संसार रूपी माया जिसे पुरखो ने कहा है महामाया या माया ठगनी

तो कुछ वर्षो पहले कुछ आज जैसी ही रात थी और कुछ कुछ आज जैसी ही बात थी...
मै था , मेरा मन था और थी मेरी भावनाए...
मझधार में कस्ती कहीं थी .. 
और थी कुछ उपमाये 

तो फिर उस रात मैंने अपना मनो-विज्ञानं और मानव-विज्ञानं दोनों अपने पर ही आजमा डाला और फिर भावनाओ को समझने के प्रयास में तब जो मिला था आज किस्मत से दुबारा डायरी के पन्ने पलटते हुए मिल गया ..
मेरे लिए मौका भी था और कारण भी.. तो मैंने सोचा की आज इसे डायरी से ब्लाग पर लिख कर फिर से "अपने आप को अपनी ही कही बात रटाने और पढ़ाने" का प्रयास करू और क्यों न आपको भी अपना साझेदार बना लू ..
तो आईये देखते है मैंने क्या बोधि-ज्ञान पाया था.. और क्या वो सही पाया था ,,, या अभी खोज जरी रखना है ..

१. "भावनाओ की कमी मनुष्य को क्रूर और और कठोर बनाती हैं , समुचित मात्रा में होने पर संयमित और बलवान बनाती हैं परन्तु भावनाओं की प्रचुरता मनुष्य को सदैव निर्बल और मूढ़ बनाती हैं ।"
विवेक मिश्र 'अनंत'..१८/१०/०२

२. "भावनाओं की हिलोरे मनुष्य को सदैव ही आनंदित कराती हैं पर अगर ये हिलोरे भँवर का रूप लेने लगे तो उससे तत्काल बाहर निकलने में ही मनुष्य की भलाई है ।
विवेक मिश्र 'अनंत'..१८/१०/०२

३.  भावनाओं को अपनी कमजोरियों एवं असफलताओ के लिए दोषी ठहराना उसी प्रकार से अनुचित है जैसे अपने दुखों को भुलाने के लिए मदिरा का सेवन करना ।
विवेक मिश्र 'अनंत'..१८/१०/०

और अंत में इतना ही कहना है ...

बुद्धि प्रधान है जगत हमारा , भावों से इसको भरना है ।
बुद्धि - भाव के मेल से ही , मानवता को आगे बढ़ना है ।

शुभ रात्रि ...
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

बुधवार, 6 जुलाई 2011

जाने भी दो यारो..

वो जो महफ़िल में आज रंग भरते है ,
वो वक्त के शहंशाह है जो हर पल बदलते है ।

आज हम आये है बनकर मेहमान उनके , 
छोड़ो जाने भी दो न कुरेदो हमको ।

भले ही तल्ख़ न हो आज जुबाँ मेरी ,
मुझे भरोसा नहीं मिजाज पर अपने ।

रोंक़ न पाउँगा मै आग को भड़कने से ,
अगर चिंगारियों को तुम हवा दोगे यूँ ही ।

बहुत नाजुक सा मुखौटा आज पहना है ,
तुम जिद न करो मुझसे रंगत में आने की ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

मैं जानता हूँ तू लिबास पसंद है लेकिन ,मैं बेनक़ाब सही,बेनक़ाब रहने दे।"

पुन: स्वागत है आप सभी का 

इस समय मेरी शाम ढल रही है (निशाचर हूँ ना भाई..लंकापति रावण मेरे लकड़-दादा थे ) मगर आधी दुनिया गहन निद्रा में सो रही है...और आधी कुछ घंटों बाद जागने की वाली है , तो मुझे पता नहीं कि इस समय आप सभी से शुभ प्रभात कहूँ या शुभ रात्रि.. ?

खैर होता है छोटे-छोटे और बड़े-बड़े जगहों पर... ठीक वैसे ही जैसे एक बेचारी महिला के चिठ्ठी में हुआ था कभी...

तो आईये एक खुला पत्र पढ़ा जाय और कुछ देर हंसी का आनंद उठाया जाय ....

गांव में एक स्त्री थी । उसके पतिदेव कही बाहर कार्यरत थे । 
वह आपने पती को जब भी पत्र लिखना चाहती थी अल्पशिक्षित होने के कारण उसे यह पता नहीं होता था कि पूर्णविराम(full stop) कहां लगेगा । इसीलिये उसका जहां मन करता था वहीं पूर्ण विराम  लगा देती थी ।
कुछ इसी तरह से उसने एक चिट्टी इस प्रकार लिखी--------

मेरे प्यारे जीवनसाथी 

मेरा प्रणाम आपके चरणो मे । आप ने अभी तक चिट्टी नहीं लिखी मेरी सहेली कॊ । नौकरी मिल गयी है हमारी गाय को । बछडा दिया है दादाजी ने । शराब की लत लगा ली है मैने । तुमको बहुत खत लिखे पर तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे । भेडीया खा गया दो महीने का राशन । छुट्टी पर आते समय ले आना एक खुबसूरत औरत । मेरी सहेली बन गई है । और इस समय टीवी पर गाना गा रही है हमारी बकरी । बेच दी गयी है तुम्हारी मां । तुमको बहुत याद कर रही है एक पडोसन । हमें बहुत तंग करती है

तुम्हारी मां की । बहू

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अब क्या करे... कई दिनों से टल रहे प्रोग्राम के बाद आज डेल्ही वेळी देख कर आया हूँ तो यही सब पोस्ट लगेगी ना.. वैसे अब पता चला कि आज और हमेशा के मेगा स्टार अमित जी की "बुड्ढा होगा  तेरा बाप" जैसी शानदार मूवी.. की बीप..बीप  को छोड़कर लोग इसके पीछे क्यों दीवाने है । भाई जब आप खुलेआम लोगो की माँ..बहन की जै-जयकार करने में संकोच नहीं करते है तो पिक्चर हाल में सुनने में क्या बुराई .... आखिर कब तक हिन्दुस्तानी अपने चेहरे और भावनाओ पर नकाब पहन कर चलेगा ?

और आज जब पश्चिम पूरब होने को व्याकुल हो रहा है तो ध्रुवों का सामंजस बनाये रखने के लिए पूरब को भी पूरी तरह कल का पश्चिम बनना ही होगा 

तो सभी को हार्दिक बधाईयाँ........

वैसे टी.वी. ओपरा तो पहले से ही व्यस्क हो गया था ... हर दूसरे सीरियल में किसी ना किसी का तीसरे से अफेयर चल रहा है ... और तो और बहू का राज खुले तब तक सास की सास के पुराने रिश्ते वहां खुल जा रहे है और घर तोड़ने की सभी सोलह कलाए वो सिखा ही रहा है  तो भारतीय सिनेमा ही क्यों सम-सामयिकता से पीछे रहता..

तो अब किसी के कहे (नाम याद नहीं ) दो लाईनों के साथ एक अल्प विराम ..

 "किसी जगह के लिए इंतख़ाब रहने दे ,मैं एक सवाल हूँ मेरा जवाब रहने दे।
मैं जानता हूँ तू लिबास पसंद है लेकिन ,मैं बेनक़ाब सही,बेनक़ाब रहने दे।"


सोमवार, 4 जुलाई 2011

माननीय जन-प्रतिनिधगण..

आज जब विश्व के कई  देशो में तरफ जन-आन्दोलन की भरमार है , जनता और जागरुक होती जा रही है , अपने अधिकारों के लिए धरना , प्रदर्शन और क्रांति के लिए उतावली हुयी जा रही है... तब आईये देखते है  की विभिन्न देशों की जनता के द्वारा चुने गए माननीय जन-प्रतिनिधगण पार्लियामेंट में विचारो की स्वतंत्रता के नाम पर किस प्रकार अपनी आवाज बुलंद करते है और मतान्तर होने पर दूसरो को किस प्रकारजबाब देते है...

 ये है महान रोमन साम्राज्य के इटली का नजारा 

 ये है शांति के मसीहा जापान के प्रतिनिध 

 ये है झगडा करने के माहिर मैक्सिकन

ये जन क्रांति के प्रणेता रूस  की संसद

 साऊथ कोरिया 

 ताइवान

 टर्की 

उक्रेन 

और ये हैं भारत के भाग्य विधाता 
*************************
और अब देखिये इन सबसे अलग देश , जिससे हम अपनी तुलना करने की हमेशा सोंचते है ..


 महान चीन 
भले ही यहाँ संसद में बोलने की आजादी न हो मगर सोने की भरपूर आजादी है....!!

शनिवार, 2 जुलाई 2011

प्रतिकार..

कुछ न कहूँ चुप ही रहूँ , शायद ये हो मेरा ठीक जबाब ।
मै कहता प्रतिकार इसे , तुम भले कहो कमजोरी जनाब ।
तुमने आरोप लगाया है ,  मैंने दिल को तेरे दुखाया है !
अपने अनर्गल शब्दों से , तेरे मन को दुःख पहुँचाया है ।
पीड़ा हुयी तुम्हे ज्यादा ही , सम्बन्ध ही थे इतने प्रगाढ़ ।
फिर भी समझ सके ना तुम , मेरे मन में उठते ज्वार ।

तुम तो सदा कहोगे ही  , हर शब्द तुम्हारे मर्यादित थे ।
चलो मान लेते है इसको , पर उनमे भी तीखेपन भी थे ।
तीरों जैसी नोक थी उनमे , दिल को भेद कर निकले थे ।
जब छलनी हो गया मन मेरा , प्रतिकार मेरे आने ही थे ।
सदा मुझे परखने की खातिर , अपनाते हो जिन पैमानों को ।
क्या कभी परख कर देखा, तुमने अपने भी व्यवहारों को ।

आरोप लगाना कठिन नही , है कठिन उसे मर्यादित रखना ।
सम्बन्ध बनाना कठिन नही, है कठिन उसे आगे ले चलाना ।
है एक बार की बात नही, कब तक मै साथ निभाऊंगा ।
आज नही तो कल मै भी , कभी पलट वार कर जाऊंगा ।
बिखर जायेंगे सम्बन्धो की , माला में गुंथे हुए मोती ।
इसीलिए चुप हूँ मै अभी , आँखे समेटे है कुछ मोती ।
 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

बंधन

प्यार, सम्बन्ध और रिश्ते ,
जन्म , मरण और मोक्ष ।
मान , सम्मान और अपमान ,
धन,सम्पत्ति,वैभव और पराभव  ।
चाहत , नफ़रत और उपेक्षा , 
अनुग्रह,आभार और अनादर ।
न जाने कितने मकड़जाल , 
फैले हैं हमारे चारो तरफ ।

कभी वो दिखते हमें प्रत्यक्ष  , कभी वो रहते है अदृश्य ।
कभी हम पाते उन्हें समझ ,कभी वो होते अबूझ पहेली ।

यूँ  जब जब हम जीते है , जीवन अलग-अलग कई खंडो में ।
हम और उलझने लगते है , इन दृश्य-अदृश्य मकड़जाल में ।

फिर हम समझ नहीं पाते , है नहीं अलग खुशिया और दुःख ।
किसी जंजीर की कड़ियों सी , ये बंधी हुयी हैं असीम अनंत ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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