वो जो महफ़िल में आज रंग भरते है ,
वो वक्त के शहंशाह है जो हर पल बदलते है ।
आज हम आये है बनकर मेहमान उनके ,
छोड़ो जाने भी दो न कुरेदो हमको ।
भले ही तल्ख़ न हो आज जुबाँ मेरी ,
मुझे भरोसा नहीं मिजाज पर अपने ।
रोंक़ न पाउँगा मै आग को भड़कने से ,
अगर चिंगारियों को तुम हवा दोगे यूँ ही ।
बहुत नाजुक सा मुखौटा आज पहना है ,
तुम जिद न करो मुझसे रंगत में आने की ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
bahut khoob Vivek ji .badhai
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