भावनाए अगर न हों तो जटिलता , अगर हों तो जटिलता और इन्ही के कम,ज्यादा होने या न होने के बल पर ही चलती है ये सारी संसार रूपी माया जिसे पुरखो ने कहा है महामाया या माया ठगनी
तो कुछ वर्षो पहले कुछ आज जैसी ही रात थी और कुछ कुछ आज जैसी ही बात थी...
मै था , मेरा मन था और थी मेरी भावनाए...
मझधार में कस्ती कहीं थी ..
और थी कुछ उपमाये
तो फिर उस रात मैंने अपना मनो-विज्ञानं और मानव-विज्ञानं दोनों अपने पर ही आजमा डाला और फिर भावनाओ को समझने के प्रयास में तब जो मिला था आज किस्मत से दुबारा डायरी के पन्ने पलटते हुए मिल गया ..
मेरे लिए मौका भी था और कारण भी.. तो मैंने सोचा की आज इसे डायरी से ब्लाग पर लिख कर फिर से "अपने आप को अपनी ही कही बात रटाने और पढ़ाने" का प्रयास करू और क्यों न आपको भी अपना साझेदार बना लू ..
तो आईये देखते है मैंने क्या बोधि-ज्ञान पाया था.. और क्या वो सही पाया था ,,, या अभी खोज जरी रखना है ..
तो कुछ वर्षो पहले कुछ आज जैसी ही रात थी और कुछ कुछ आज जैसी ही बात थी...
मै था , मेरा मन था और थी मेरी भावनाए...
मझधार में कस्ती कहीं थी ..
और थी कुछ उपमाये
तो फिर उस रात मैंने अपना मनो-विज्ञानं और मानव-विज्ञानं दोनों अपने पर ही आजमा डाला और फिर भावनाओ को समझने के प्रयास में तब जो मिला था आज किस्मत से दुबारा डायरी के पन्ने पलटते हुए मिल गया ..
मेरे लिए मौका भी था और कारण भी.. तो मैंने सोचा की आज इसे डायरी से ब्लाग पर लिख कर फिर से "अपने आप को अपनी ही कही बात रटाने और पढ़ाने" का प्रयास करू और क्यों न आपको भी अपना साझेदार बना लू ..
तो आईये देखते है मैंने क्या बोधि-ज्ञान पाया था.. और क्या वो सही पाया था ,,, या अभी खोज जरी रखना है ..
१. "भावनाओ की कमी मनुष्य को क्रूर और और कठोर बनाती हैं , समुचित मात्रा में होने पर संयमित और बलवान बनाती हैं परन्तु भावनाओं की प्रचुरता मनुष्य को सदैव निर्बल और मूढ़ बनाती हैं ।"
विवेक मिश्र 'अनंत'..१८/१०/०२
२. "भावनाओं की हिलोरे मनुष्य को सदैव ही आनंदित कराती हैं पर अगर ये हिलोरे भँवर का रूप लेने लगे तो उससे तत्काल बाहर निकलने में ही मनुष्य की भलाई है ।
विवेक मिश्र 'अनंत'..१८/१०/०२
३. भावनाओं को अपनी कमजोरियों एवं असफलताओ के लिए दोषी ठहराना उसी प्रकार से अनुचित है जैसे अपने दुखों को भुलाने के लिए मदिरा का सेवन करना ।
विवेक मिश्र 'अनंत'..१८/१०/०२
और अंत में इतना ही कहना है ...
बुद्धि प्रधान है जगत हमारा , भावों से इसको भरना है ।
बुद्धि - भाव के मेल से ही , मानवता को आगे बढ़ना है ।
शुभ रात्रि ...
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
bahut achha likhe hain
... बेहद प्रभावशाली
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
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