जाने कैसे कब किस पल हम , दिल अपना तुमको दे बैठे ।
प्रीत लगाकर तुमसे अपनी , चैन गवां हम अपना बैठे ।
शांत नदी की धाराओं सी , मेरे मन की लहरें बहती थी ।
गिराकर कंकर प्रेम का तेरा , मैंने उसमे भंवर बना दी ।
अब तो बस ये हाल हमारा , तुझ बिन दिल बेहाल हमारा ।
तेरी लगन लगी मुझे ऐसे , भटक गया दिल कहीं हमारा ।
चोरी-चोरी, चुपके-चुपके , जब तुझसे नैन मिलाता हूँ ।
तेरे रूप की मादकता में , अपना होश गँवाता हूँ ।
रातें तो बस रातें है तू , दिन का भी मेरे ख्वाब बनी ।
सोते जागते हर एक पल , तू अब मेरा अरमान बनी ।
तेरे प्रेम की माया ऐसी , अब बस तू ही है मुझको दिखती ।
इतना सब हो जाने पर भी , कैसे लिखूं अब तुझको चिठ्ठी ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
बहुत ही उम्दा लिखते हैं आप| ब्लॉग पढकर बहुत अच्छा लगा..
बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना|
bahut achhe tarike se feelings express ki gai hain isme
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