जो कहा तुमने अभी , सच होगा मै मानता हूँ ।
आपकी निरपेक्षता को , बा-अदब पहचानता हूँ ।
बोले बिना कटु शब्दों को , सच से परिचय करवाते हैं ।
लाग लपेट में पड़े बिना , अपनी बात आप कह जाते है ।
अफसोस आपको बातों को , सदा सत्य मान नहीं सकता ।
मज़बूरी है कुछ मेरी भी , मै सत्य उधार नहीं ले सकता ।
कुछ मुझको भी मोहलत दो , स्वयं सत्य को मै पहचान सकूँ ।
इस सत्य असत्य के अंतर को , मै अंतर-मन से जान सकूँ ।
हाँ ये सत्य अभी पराया है मै, इससे रिश्ता नहीं जोड़ पाया हूँ ।
मुझे अनुचर बनना आया नहीं , बस अनुरागी ही बन पाया हूँ ।
सत्य वही है इस जग में , स्वयं जान सकें हो जिसको आप ।
बाकी सब है केवल कल्पना , क्यों नहीं जानते अब तक आप ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
रचना और चित्र दोनों ही बहुत अच्छे हैं ....................आभार
dhanyawad rekha ji
bahut hi rang-biranga blog hai aapkka achcha laga.
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