ओ हमसफ़र , दो पल को ठहर...........
झूंठ बोलना आता नहीं , और सच को कह नहीं पाएंगे ।
कैसे कहें हम तुमसे अभी , जो हाल मेरे दिल का है ।
कुछ पल का मुझको मौका दो , समझ सकूँ अपने दिल को ।यह सचमुच खेल निराला है , या फिर से खेल पुराना है ।
यदि खेल निराला है साथी , तो रचनी पड़ेगी परिभाषाएं ।यदि खेल पुराना है साथी , तो गढ़नी पड़ेगी मर्यादाएं ।
फिर जब तक मै जान ना लू, क्या हाल तुम्हारे दिल का है ?
मै कैसे कहूँ कुछ शब्दों में , क्या हाल हमारे दिल का है ।अब तो तुम ही मदत करो , कुछ कदम चलो संग और मेरे ।
हो सकता है मै जान सकूँ , क्या हाल हमारे दिल का है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
जी हाँ कुछ कदम तो अकेले चलना ही पड़ेगा यदि एक दूसरे का हाल जानना है.
एक टिप्पणी भेजें