हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

अंतर्मन...

जाने कितने भाव छिपे हैं , मेरे अंतर्मन में आज ।
सभी प्रतिक्षा करते है , खुल कर आने को बस आज ।
इसमे से ही भाव कोई अब , वीणा बन कर झनकेगा ।
या फिर कोई भाव अचानक , लावा बनकर दहकेगा ।
कुछ मन की व्यथा बताएँगे , कुछ मन में ही रह जायेंगे ।
कुछ भाव ख़ुशी का लायेंगे , कुछ दिल को बहुत दुखायेंगे ।

कुछ अपना तुम्हे बनायेंगे , कुछ अपनो को बिसरायेंगे ।
कुछ ज्वाला बनकर उभरेंगे , कुछ गीली लकड़ी सा सुलगेगें ।
कुछ आंसू बनकर टपकेंगे , कुछ अंत समय तक सिसकेगें ।
इनमे से ही भाव कोई , अपने संबंधो की परिणित होंगे ।
सम्मानजनक जो भाव लगे , तुम उसको अपना लेना ।
बाकी तो बस भाव ही हैं , उनको यूँ ही बिसरा देना ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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