हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 13 जुलाई 2011

अफसोजनक बात...


बस एक छोटी सी कहानी और तीन अफसोसजनक बातें...

         तो यारों आज बहुत दिनों बाद थोडा घुमावदार रास्तो पर तेज ड्राइव करने का मन था पर देर शाम हो चुकी थी और गोरखपुर शहर में ऐसा एक ही रास्ता है जो रामगढ ताल के किनारे किनारे सहारा स्टेट कि तरफ जाता है पर रास्ता सुनसान और अँधेरा होने के कारण उसे देर शाम कम ही लोग प्रयोग करते है ।

        पर घूमने का मन था तो चल पड़ा और रस्ते में अपने एक मित्र को भी ले लिया.. हालाँकि जब मै वास्तव में ड्राइव का मजा लेने लगता हूँ मेरे वाहन पर यदि कोई हमसफर है तो वो प्राय ईश्वर के चरणों में समर्पित होने लगता है (हा.हा.ह़ा, चलो कम से कम इस तरह तो वो भगवान को याद करते है) । पर अचानक सब मजा किरकिरा हो गया ।

         गाड़ी की हेडलाइट ने काम करना बंद कर दिया.. खैर इससे एक फायदा तो था कि उस सुनसान रास्ते पर विचरने वाले किसी राहजन को मेरा वाहन तब तक नजर नहीं आता जब तक मै उसके सामने से न गुजर जाता और वैसे भी उनसे मुझे कम ही डर लगता है ( क्यों यह अलग मामला है ) पर अँधेरे में अन्धो कि तरह गाड़ी चलाने का मेरा कोई इरादा न था तो मैंने हाइवे कि तरफ रुख कर लिया पर जैसे ही संपर्क मार्ग से मै हाइवे पर आया तो मुझे एक अधेड़ महिला रोड पर पड़ी नजर आयी जिसके दाये-वाये से कई ट्रक और कारे गुजर रही थी ।

       मै भी अपनी आदत का मारा घुमा लिया गाड़ी उसी तरफ यह देखने के लिए कि मामला क्या है ?, वह जीवित है या..... , पास पहुँचा तब तक एक बेचारा भलेमानुष साइकल सवार भी वही रुक गया और उसे हाथ से पकड़ कर जबरदस्ती रोड के किनारे खेंच कर करने लगा , तो मै आगे चल दिया । आगे भी लाइट बनने की  कोई व्यवस्था न देख कर मै वापस लौटने लगा तो देखता हूँ कि वह महिला फिर और ज्यादा बीच रोड पर लेती हुयी है, देख कर कलेजा मुह को आ गया कि तेजी से गुजरते ट्रको के  नीचे अब आयी कि तब आयी ? तत्काल तो वही नहीं रुक सका क्योंकि ट्रैफिक था पर थोडा आगे मेरी गाड़ी के ब्रेक फिर जाम हो गए और गाड़ी वापस घुमा कर उसके ठीक पास पहुँचाने का मै उपक्रम करने लगा । 
       
       मित्र महोदय थोडा घबराए और बोलो क्यों नाहक पंगा लेते हो , और अगर उसके पास पहुँचते पहुँचते किसी ट्रक का पहिया उसके ऊपर आ गया तो आँखों के सामने एक दर्दनाक मौत देखनी पड़ेगी। दूर से देखने पर महिला पूरी तरह से निर्जीव लग रही थी पर रोड पर किसी दुर्घटना के चिन्ह भी नहीं नजर आ रहे थे कि उसे निर्जीव मान लिया जाय। एक पल को तो मेरे मन में भी आया कि चलो जाने देते है जब महिला मरने पर ही उतारू है तो मई क्या करूँ, अभी कोई न कोई आएगा और उसे किनारे कर देगा पर फिर मन नहीं माना और मैंने १०० नंबर डायल करना शुरू किया मगर नंबर काम नहीं कर रहा था ........!!

तो सबसे पहली अफसोस जनक बात है .. आपको अचानक जरुरत पड़े तो 100 नंबर किसी काम का नहीं जबकि कुछ ही दिन पहले शहर में तमाम ढिंढोरा पीटा गया था कि अब ये नंबर तुरंत उठेगा जब और जहाँ आपको पुलिस की जरुरत हो तब और तहां मदत मिलेगी....।

और दूसरी अफसोसजनक बात.. आखिर कैसे मानवीय संवेदनाओ का इतना ह्रास हो रहा है कि बेकार पंगा लेने , अपने काम में व्यस्त होने या किसी भी अन्य कारण से एक पल के लिए ही सही हम किसी को मरने के लिए छोड़ कर आगे जाने का विचार करने लगते है ..!
तो फोन नहीं लग रहा था और अब तक  संवेदनाये वापस जग गयी थी तो अपने मित्र महोदय की असहमति को दर किनार कर मै उसे किनारे करने चल पड़ा। तब तक एक तेज रफ़्तार ट्रक अचानक उसके ठीक पहले रुका , चलो गनीमत थी कि ड्राइवर को दिख गया और उसके कारण दोनों साइड की ट्रैफिक अवरुद्ध हो गयी । और तभी पीछे से आ रही एक पुलिस बाइक भी आ गयी और उन्हें भी रोड पर पड़ी महिला नजर आ गयी । तो पुलिस वाले भी गाड़ी से उतरे और दूर से जायजा लेने लगे की वह जीवित भी है या मर गयी । मैंने उन्हें तफसील किया कि अभी कुछ देर पहले ही इसे किनारे किया गया था अब फिर से यह जबरदस्ती मरने के इरादे से बीच रोड पर लेटी है। इस बार इसका कोई पक्का इन्तिजाम करिए ।

और अब तीसरी अफसोसजनक बात ... आखिर घर वालो से झगडा करके मरने कि इतनी जिद क्यों ?
क्या क्रोध या हताशा में जान देकर चैन मिल जायेगा ?
और अगर मर कर भी चैन न मिला तो मरने वाला और उसका परिवार कहाँ जायेगा ?

शुभ रात्रि



1 टिप्पणी:

Deepak Saini ने कहा…

आपकी तीनो बाते सही है
मौत किसी भी परेशानी का इलाज नही है

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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