कुछ लोग मुखौटे पहन रहे ,
कुछ लोग मुखौटा जीते हैं ।
जो लोग जमीं को तरस रहे ,
वही लोग आसमां जीते हैं ।
कुछ लोग सियासत करते हैं ,
कुछ लोग सियासत पहन रहे ।
कुछ लोग नजाकत रखते हैं ,
कुछ लोग नजाकत ओढ़ रहे ।
यूँ हम भी अपने चहरे पर , कुछ एक मुखौटे रखते हैं ।
जिसने जैसा चाहा हमसे , वैसा ही हम उसे दिखते हैं ।
क्यों जिद करते हो तुम मुझसे, मेरे किसी और ही चेहरे को ।
तुम अभी गुलाब के आदी हो , मत माँगो के कमल फूलों को ।
इसको ही तो कहता हूँ मै , सज्जनता सादगी मेरे जीवन की ।
एक बार जो तुमने देख लिया, वह मुखौटा न बदलेगा पुन: कभी ।
तुम चाहे जो भी नाम रखो , मै तो गिरगिट कहता हूँ ।
जो भी जैसी शाख मिली , मै वैसा ही रंग रखता हूँ ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
achha hai
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