आओ मै प्रेम सिखाता हूँ , तुम्हे प्रेम के रूप बताता हूँ ।
कहते हो तुम जिसे प्रेम , उसका विस्तार बताता हूँ ।
जैसे बहती नदिया का , लगता हमको है जल प्यारा ।
पर जब वह रुक जाती है , दूषित हो जाता जल सारा ।
वैसे ही है प्रेम की धारा , रुकते ही हो कलह पुराना ।
बहती है जब इसकी धारा , सारा जब हमें लगता प्यारा ।
प्रेम नहीं है कभी सपाट , तीन कोण में उसका वास ।
काया , मन और अंतरात्मा , इनमे प्रेम का होता वास ।
काया करता जब भी प्रेम , प्रेम की होती केवल भ्रान्ति ।
शोषण होता बस औरों का , मन को नहीं मिलती शांति ।
काया से जब प्रेम करोगे , मन में घृणा वैमनस्य भरोगे ।
लालच वासना और लिप्सा , इनको ही तुम प्रेम कहोगे ।
फिर पाकर कष्ट प्रेम में तुम , जीते जी मर जाओगे ।
या कायरता में होकर विरक्त , साधू सन्यासी हो जाओगे ।
जब प्रेम जायेगा मन के तल पर , मन मयूर हो जायेगा ।
स्वाद मिलेगा तुम्हे अनोखा , पर स्वाद न थिर रह पायेगा ।
कभी बनेगा शिखर प्रेम का , कभी विषाद का छण भी आएगा ।
फिर प्रेम की इस छणभंगुरता से , एक नया द्वार खुल जायेगा ।
प्रेम युक्त जब होगी आत्मा , द्वव का भेद मिट जायेगा ।
छोड़ भरोसा किसी और का , स्वयं से प्रेम हो जायेगा ।
सच्चा प्रेम वही है जब , तेरा-मेरा भेद मिट जायेगा ।
यही प्रेम सभी कष्टों से , तुम्हे भवसागर पार ले जायेगा ।
2 टिप्पणियां:
bahut achha likhe hain bhai aur photo bahut achhi hai..kis mandir ki hai?
Govind Ji , ye delhi ka ek bahut bada Shiv Mandir hai..Nam bhool gaya hoon, magar isake samane hi Jaino ka ek bada Aradhana sthal bhi hai.
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