जाने कब से मेरे मन के , अतृप्त किसी किनारे पर ।
आकर बैठ गयी है देखो , चाहत कोई अनजानी पर ?
यूं तो लगाती है वो मुझको, कुछ जानी पहचानी सी ।
शायद है वो मेरे मन की , कोई अतृप्त कहानी सी ?
हाँ वही पुरानी अभिलाषाए , वही पुरानी चाहत फिर ।
लेकिन फिर भी शब्द नहीं , ना भाव वही पुराने फिर ?
मन के आँगन में निशदिन, कुछ बादल बन घुमड़ता है ।
मन में उठती चाहत से , अब दिल भी बहुत झुलसता है ।
कैसी अजब कहानी है , ज्यों बिन वर्षा के बरसे पानी है ।
लगाती बहुत पुरानी है , पर अब भी अनकही कहानी है ।
अपनो सी जब लगाती है वो , फिर भी क्यों अनजानी है ।
समझ के भी मै समझ न पाता, अब यही मेरी कहानी है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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