काल के कराल से , कौन बच पाया है ?
काल के कराल पर, कौन टिक पाया है ?
काल के प्रवाह को , कौन रोंक पाया है ?
काल के राह को , कौन छेंक पाया है ?
पर्वतों को काट कर , राह नयी बनती है ।[२.]
आंधियों की दिशा , काल ही चुनती है ।
लक्ष्य भी तूफान का, काल तय करता है ।
काल के कराल से , कौन बच सकता है ।
काल यहाँ जब कभी , है अपनी बदलता दिशा ।
रात हो जाता दिन, और दिन हो जाती निशा ।
मिट गए साम्राज्य वो, जिनकी थी सब दिशा ।
नित सूर्य के तेज को भी, लील लेती है निशा ।
काल के दुर्ग को , कौन भेद सकता है ?
काल के शीश को, कौन झुका सकता है ?
काल के रोष को , कौन दबा सकता है ?
काल के वेग को , कौन नाप सकता है ?
आदमी तो आदमी , भगवान वो बनता है ।
देवाधिपति का पद भी, काल ही दिलाता है ।
सूर्य-वंसी , चन्द्र-वंसी , सब को नाचता है ।
एक पल में राज देता, एक में मिटाता है ।
काल को छोड़ कर , कौन जीत पाया है ।
काल तो काल है, सब उसी की माया है ।
काल की कृपा से , चल रही ये काया है ।
काल की छाया से , जीवन मैंने पाया है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया.
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