हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 4 अगस्त 2010

हवा के पुल बनाने वाले...

हवा के पुल बनाने वाले, कभी धरातल पर पैर नहीं रखते।
वो ठोस जमीनी हकीकतों से, कभी वास्ता भी नहीं रखते।

सोंचते   हैं  वो हवा में  ,  सब कार्य   भी   करते   हवा   में ।
कार्य का परिणाम भी , जग को दिखाते बस हवा में ।

पूँछो अगर सीखा कहाँ से, तुमने बनाना पुल हवा में ।
बस मुस्कुरा देते है वो , उंगली दिखाते फिर हवा में ।

तो

वो जब बनाते पुल हवा में, स्वं भी हवा में रहते है ।
हाथों से करते इशारे,  कुछ अनबूझे  से वो हवा में ।

फिर रात को सोते में भी , बाते  करते  वो  हवा में ।
अनगिनित फरमान भी, वो जारी करते है हवा में ।

इस तरह से जब कभी , वो बनाते पुल हवा में ।
मेहनत का पैसा किसी का , वो लुटाते है हवा में ।



© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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