१.
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , एक दूजे को दोनों प्यारे ।हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , अंधे लूले हैं यहाँ सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , राज पथों पर हैं अंधियारे ।हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जिंदाबाद कहो मिल सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , होते रोज हैं वारे - न्यारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जब बँटे रेवड़ी खाए सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , कलयुग के दोनों है मारे ।२.
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जो अपने वो हमें दुलारे ।
कौन पूंछता सत्य है क्या , किसे पड़ी है न्याय की ?
बस देख तमाशा पैसे का , यहाँ पैसा दे इंसाफ भी ।
रोजी रोटी उसे मिलेगी , जो बाँटेगा अपना हिस्सा ।सब्र नहीं यहाँ किसी को , सबको जल्दी घर है जाना ।
किसकी बारी आने वाली , ये सब है केवल किस्सा ।
चाह रहे है यहाँ सभी , एक छोटा रस्ता ही अजमाना ।
लेन देन से चलती दुनियां , जब मूलमंत्र है आज ये ।
खोजे कौन यहाँ भ्रष्टों को , हैं हर घर में वो आज रे ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
जीने की मजबूरी और भ्रष्टाचार के बिना नहीं जीने देने वाली सरकारी व्यवस्था के सभी मारे हैं ...निगरानी और कार्यवाही की व्यवस्था तो छोडिये मंत्रियों और अधिकारीयों को कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं है ऐसे में सुधार की आशा नहीं के बराबर है ...
सच लिखा है आपने आज भ्रष्टाचारने हमारे देश को खोखला कर दिया है !
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