["संगीनों के साये में सन्नाटा" , यही कहता है आज-कल का अखबार "कश्मीर" के लिए]
तो हम कहना चाहते है इस देश में छुपे 'कुछ दोगले नापाक लोगों' के आका 'पाकिस्तान' से
'ईश्वर' ने इस दुनियां में , 'धरती' एक बनायीं थी ।
जब तुमने उसको बाँट लिया, फिर उसका दोष कहाँ है भाई ।
फिर भी तुमको चैन नहीं , हक़ छीन रहे तुम औरों का ।
अपने घर में अँधियारा है पर , चिंता सता रही है गैरों का ।
प्यार से मांगो आकर अगर , हम अपना सर्वस लुटा देंगे ।
ताकत से कुछ छीनोगे तो , घुटनों पर तुमको ला देंगे ।
शांति हमें प्यारी है लेकिन , रण से ना हम कभी डरेंगे ।
अपने जान की बाजी लगा , हम जान तुम्हारी हर लेंगे ।
बेहतर है तुम दूर रहो , अपने 'घटिया नापाक इरादों' से ।
'भाईचारे' को दफनाकर तुम , ना ललकारो रण भूमि में ।
हमको है 'संतुष्टि' सदा , जो हिस्सा हमको तुमने दिया ।
तुमको अभी सीखना है , 'बँटवारे' ने क्या सिला दिया ।
हमें नहीं चाहिए ऐसा कुछ , जो तेरे हिस्से आया है ।
हमने चाहा था कभी नहीं , ये बटवारा तुमने करवाया है ।
हम 'भारत माँ' के बेटे है , यह जननी सिंह जन्मती है ।
वह कोख अभागी होगी जो , तुम सा सियार जन्मती है ।
तुम दूर रहो इस धरती से , हम इसकी पूजा करते है ।
अपनी जान निछावर कर , हम इसके मान को रखते है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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