भारी भरकम जेबों को , मै हल्का करना बतलाता हूँ ।
उस से आगे बढ़ कर मै , चोरी की कला बताता हूँ ।
लूट-पाट करना जमकर , मै पल में ही सिखलाता हूँ ।
गला काट कर शीश सहित , गायब होना पढाता हूँ ।
ब्याभिचार की सभी कलाएं , सचित्र तुम्हे सिखाता हूँ ।
कैसे लेते रिश्वत है ? , कैसे उसे पचाते है ??
कैसे औरों का मॉल हड़प कर , अपना उसे बताते है ।
लोकतंत्र के नाम पर कैसे , हम मिलकर लूट मचाते है ।
हमसे ज्यादा कौन अनुभवी , होगा पाप की दुनिया में ।
हमसे ज्यादा कौन पतित , होगा पूरी दुनियां में ।
नेतागीरी करते हम , देखो सारी दुनिया में ।
इसीलिए तो जनता ने , नेता हमें बनाया है।
देख हमारे अनुभव को , हमें सत्ता में पहुँचाया है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
सराहनीय अभिव्यक्ति
जबरदस्त व्यंग.... ऐसे लगा कि अबी नेता जाऊं और सारी खुबियां दुनिया को दिखाऊं...
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