'हे प्रभु'
जाने कितनी बार अभी तक , तुमने मुझको जन्म दिया ?
जाने कितनी बार कौन सी , कोखों से उत्पन्न किया ?
जाने कितनी बार मृत्यु नें , स्वयं आगे बढ़ मुझे लौटाया ?
जाने कितनी बार स्वयं ही , मृत्यु के पास मै चल कर आया ?
जाने कितनी नावों में , चढ़ना मैंने स्वीकार किया ?
जाने कितने सगार में , मैंने कितना व्यापर किया ?
जाने कितनी नावों का , अब तक मैंने निर्माण किया ?
जाने कितने मझधारों को , अब तक मैंने पार किया ?
जाने कितनी बार है डूबी , नाँव मेरी मझधारों में ?
जाने कितनी बार मै पहुँचा , सागर पार किनारों पे ?
सोंच सोंच कर थक जाता हूँ , समझ नहीं मै पाता हूँ ।
कितनी नावों में कितनी बार , हे प्रभु मुझे चढाओगे ?
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
अंतर्द्वंद को बताती सुन्दर रचना ..
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