प्रेम भाव में डूबे अक्षर , प्रेम रंग की पाती ।
पहले भी मै लिखता था , कुछ कोरे अक्षर कोरी पाती ।
तुमसे मिलकर सीख गया , अब प्रेम भाव की बाती ।
पहले भी मै मिलता था , कुछ खाली कोरे भावों से ।
लेकिन अब तो भरा हुआ हूँ , तेरे प्रेम के भावों से ।
सोँच रहा हूँ तुमने भी, शायद लिखी हो मुझको पाती ।
यदि ऐसा है निश्चय ही , होगी उसमें दिल की बाती ।
अगर नहीं लिख पायी हो, मुझे प्रेम की अपनी पाती ।
तो तुम लौटा देना मुझको , मेरे अक्षर मेरी पाती ।
मै इसे सहेज कर रख लूँगा , अपने प्रेम पिटारे में ।
तुम जब आना पास मेरे , पढ़ लेना कभी इशारे से ।
शायद तुमको भुला सकूँ , इससे कुछ दिन और अभी ।
या फिर शायद इसी तरह , मै तेरे प्रेम को पाऊँ अभी ।
जो भी हो अच्छा ही होगा, यही सोँच कर लिखता हूँ ।
लो अपने प्रेम की पाती को, अब तेरे हवाले करता हूँ।।
(मूलत: ०१/०६/२००१-को लिखा हुआ , उसके लिए जो मेरा आधा भाग है )
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
सुन्दर...भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी.
अरे भाई जिनके (आधे भाग) लिए यह कविता लिखी है, घर आ गई हैं या वेट कर रहे हैं। :))
अरे भाई जिनके (आधे भाग) लिए यह कविता लिखी है, घर आ गई हैं या वेट कर रहे हैं। :))
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