हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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सोमवार, 9 अगस्त 2010

मेरे प्रभु....मेरी नैया पार लगाओ।

मेरे प्रभु...
"देह दृष्ट से अखिल जगत में,
मै तेरा दास हूँ।
तूने जग में मुझे बनाया,
मैंने अपना पात्र निभाया।

जीव दृष्ट से मै तेरा,
बिखरा हुआ एक अंश हूँ ।
तूने श्रृष्टि की रचना की,
मै तेरा ही वंश हूँ।

आत्म दृष्ट से मै हूँ वही,
जो तुम हो संसार में।
तुम्ही आकर मुझे बताओ,
कौन सा मै अवतार हूँ।

अगर नहीं तुमने बतलाया,
मन का संशय नहीं मिटाया।
भटका करूँगा जन्म जन्म तक,
मै तेरे संसार में।

अब तो आकर मुझे बताओ,
मेरी नैया पार लगाओ।
अपना असली रूप दिखाओ,
मुझको भी संग लेकर जाओ।"

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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