हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

आतंरिक विद्रोह...

जबतक आप किसी भी कार्य , लक्ष्य , अथवा सम्बन्धो हेतु पूर्णतया स्वयं अंतरमन से राजी नहीं होते , 
आप बाह्य दबाव अथवा कारको के प्रभाव में अपना सर्वोत्तम योगदान नहीं दे सकते हैं ।
और
जब तक आप हार्दिक रूप से प्रशन्न और भावविभोर नहीं होते , आप अपने अंतरमन को संतुष्ट नहीं कर सकते। फिर जब तक आपका ह्रदय रिक्त है आपका अंतरमन विरक्त ही रहेगा ।
और
जब तक आपका अंतरमन विरक्त है आप अपने अंदर ही विद्रोही को पालते रहेंगे जो आपकी हर रचनात्मकता और सकारात्मकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता रहेगा ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


बेसहारा...

जीवन संघर्षो की बनी दुधारी , लगते घाव हैं बारी बारी ।
जायें किधर समझ ना आये ,आगे कुआँ और पीछे खाई ।
एक तरफ आदर्शो का अब , कटु कोरापन हो रहा प्रगट ।
ठोस धरातल था कल तक , दलदल बन वो रहा विकट ।
परीलोक की गल्प कथाएं , प्रेतलोक का भय दिखलाये ।
कलियों पर मंडराते भौरे , दूर दूर तक नजर ना आयें ।

ठकुरसुहाती सुनने वाले , सोहर सुन कर भी मुस्काए ।
आवारो सा भटके जीवन , कोई सहारा नजर ना आये ।
इनकी टोपी उनके सर , मंत्र भी देखो काम ना आये ।
नजर घुमाओ जिस भी ओर , हाहाकार नजर में आये ।
भागम भाग है चूहों की , और सागर में कश्ती बौराये ।
दरक रहा जलयान पुराना , खेवनहार नजर ना आये ।

मृगतृष्णा सा था जीवन , जीवन भर अब तक ललचाए ।
टूटा पौरुष ढली जवानी , चलने को सहारा नजर ना आये ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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