हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://www.vmanant.com/?m=1

रविवार, 11 मई 2014

ओ राही दिल्ली जाना तो ..."गोपाल सिंह नेपाली"

यह कविता प्रसिद्ध कवि "गोपाल सिंह नेपाली" ने 
"चीन के युद्ध में हमारी करारी हार" के बाद 
"पंडित नेहरु की कायरता पूर्ण नीतियों से क्षुब्ध होकर" लिखी थी 

पर इस कविता को पढ़कर लगता है जैसे यह कविता मनमोहन सरकार के लिए लिखी गयी हो.... 
कितनी सटीक पंक्तियाँ आज भी कितनी प्रासंगिक....................

ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से ।
चरखा चलता है हाथों से, शासन चलता तरवार से ।
यह राम-कृष्ण की जन्मभूमि, पावन धरती सीताओं की ।
फिर कमी रही कब भारत में सभ्यता, शांति, सदभावों की ।
पर नए पड़ोसी कुछ ऐसे, गोली चलती उस पार से ।
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से ।

तुम उड़ा कबूतर अंबर में संदेश शांति का देते हो ।
चिट्ठी लिखकर रह जाते हो, जब कुछ गड़बड़ सुन लेते हो ।
वक्तव्य लिखो कि विरोध करो, यह भी काग़ज़ वह भी काग़ज़ ।
कब नाव राष्ट्र की पार लगी यों काग़ज़ की पतवार से ।
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से ।

तुम चावल भिजवा देते हो, जब प्यार पुराना दर्शाकर ।
वह प्राप्ति सूचना देते हैं, सीमा पर गोली-वर्षा कर ।
चुप रहने को तो हम इतना चुप रहें कि मरघट शर्माए ।
बंदूकों से छूटी गोली कैसे चूमोगे प्यार से ।
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से ।

नहरें फिर भी खुद सकती हैं, बन सकती है योजना नई ।
जीवित है तो फिर कर लेंगे कल्पना नई, कामना नई ।
घर की है बात, यहाँ 'बोतल' पीछे भी पकड़ी जाएगी ।
पहले चलकर के सीमा पर सर झुकवा लो संसार से ।
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से ।

हम लड़ें नहीं प्रण तो ठानें, रण-रास रचाना तो सीखें ।
होना स्वतंत्र हम जान गए, स्वातंत्र्य बचाना तो सीखें ।
वह माने सिर्फ़ नमस्ते से, जो हँसे, मिले, मृदु बात करे ।
बंदूक चलाने वाला माने बमबारी की मार से ।
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से ।

सिद्धांत, धर्म कुछ और चीज़, आज़ादी है कुछ और चीज़ ।
सब कुछ है तरु-डाली-पत्ते, आज़ादी है बुनियाद चीज़ ।
इसलिए वेद, गीता, कुर‍आन, दुनिया ने लिखे स्याही से ।
लेकिन लिक्खा आज़ादी का इतिहास रुधिर की धार से ।
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से ।
चर्खा चलता है हाथों से, शासन चलता तलवार से ।।


आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


क्रिएटिव कामन लाइसेंस
अनंत अपार असीम आकाश by विवेक मिश्र 'अनंत' is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 3.0 Unported License.
Based on a work at vivekmishra001.blogspot.com.
Permissions beyond the scope of this license may be available at http://vivekmishra001.blogspot.com.
Protected by Copyscape Duplicate Content Finder
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...