कहो सोचकर अंजाम को , मैं कैसे पीछे हट जाऊँ ।
भूलकर वादों को अपने , कैसे नजर से गिर जाऊँ ।
नजर झुका कर चलते रहना , अपने वश की बात नहीं ।
कहे गए शब्दों से डिगना , अपने वश की बात नहीं ।
जीवित रहना इमान बेचकर , अपने वश की बात नहीं ।
यूँ गैरों के तानो को सुनना , अपने वश की बात नहीं ।
ये बात अलग है पत्थर से , पत्थर बन कर मिलता हूँ ।
रिश्तों के व्यापारी से , मोल मै अपना करता हूँ ।
पर
लेकर मोल बदल जाना , ये अपने वश की बात नहीं ।
सौदों से रिश्तों को भुलाना , अपने वश की बात नहीं ।
जबरन ताकत से झुक जाना , अपने वश की बात नहीं ।
अपने मन की ना कर पाना , अपने वश की बात नहीं ।
modified again..19/10/10
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
6 टिप्पणियां:
3/10
औसत
रचना झोल खा रही है
बस ठीक-ठाक तुकबंदी / सुन्दर प्रयास
बहुत ही सुन्दर रचना !
धन्यवाद उस्ताद जी
आज पहली बार अपनी किसी रचना पर किसी की समीक्षात्मक टिपण्णी देखी , हो सकता है पहले भी लोगों ने तारीफ के स्वर में किया हो पर वास्तव में मै अपनी समीक्षात्मक कमियों की तलाश में रहता हूँ जो यहाँ खोजे नहीं मिलती शायद लोग वास्तविक टिपण्णी लिखने से बचते है.
तो आप का आभार ... आपने आज मेरी मुराद पूरी की..
जी हाँ आपने सही कहा है , मुझे भी रचना झोल खाती नजर आ रही थी जिसे मै ब्लाग पर पोस्ट करने से कतरा रहा था मगर फिर सोंचा कि पहले से थका हूँ तो आज यही सही.
आपका अपना
विवेक
रचना अच्छी है। एक निवेदन करना चाहूंगा...सोंचकर और बेंचकर में अनुस्वार नहीं रहेगा...सही शब्द हैं..सोचकर ,बेचकर।...धन्यवाद।
धन्यवाद
आज बहुत अच्छा दिन है ,
महेंद्र जी ,
क्षमा करे मुझे ,शायद मेरा मन का ही अनुस्वार ख़राब हो गया है , जिसके कारण टाईप करते समय प्राय: यह गलती मै लगातार करता हूँ, आगे से सजगता के साथ सुधार करने का प्रयास करुगा .
प्रिय भाई विवेक
जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ, तुम्हारी रचनाएँ मुझे हमेशा से अच्छी लगती रहीं है
मै कायल हूँ तुम्हारे काव्यात्मकता का. दिल को छू जाने वाले विचारों से लैश तुम्हारी रचनाये बेहद ही उम्दा हैं, मेरी हार्दिक शुभकामनायें!
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