कुछ अच्छाई और बुराई के ,
सामंजस पर टिकी ये श्रृष्टि है ।
विपरीत ध्रुवो के बिना कहाँ ,
कभी चल पायी कोई श्रृष्टि है ।
शिव शक्ति के मिले बिना ,
नहीं होती श्रृष्टि की उत्पत्ति है ।
मानव जाति है जग में तो ,
दानवो जाति भी होगी ही ।
यदि देवो का है देवलोक ,
असुर लोक भी होगा ही ।
अच्छाई बिना बुराई के ,
पहचानी नहीं कभी जाती ।
अगर है बहती प्रेम की धारा ,
फिर विरह वेदना होगी ही ।
त्याग अगर है इस जग में ,
फिर लोभ की ज्वाला होगी ही ।
दुःख के बिना नहीं इस जग में ,
सुख का एहसास हो पाता है ।
अच्छाई और बुराई के ,
सामंजस पर टिकी ये श्रृष्टि है ।
विपरीत ध्रुवो के बिना कहाँ ,
कभी चल पायी कोई श्रृष्टि है ।
सामंजस्य बनाकर चलना ही ,
जीवन की है बस नियति है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें