भाग्यो प्रधान: कर्मा द्वितीया...."
ये मेरा मानना है और वर्तमान में यही सत्य भी है चाहे आप माने या न माने..!
हालांकि भाग्य प्रधान है अथवा कर्म ?
इस पर ठीक उसी प्रकार से बहस किया जा सकता है जैसे " पहले मुर्गी आई या अंडा।"
इस पर ठीक उसी प्रकार से बहस किया जा सकता है जैसे " पहले मुर्गी आई या अंडा।"
वैसे पहले आई तो मुर्गी ही थी और अंडा देना बाद में उसने शुरू किया। भ्रम में न पड़े ... वास्तव में पहले मुर्गी अंडा नहीं बच्चा देती थी जिसका बर्थ रिकार्ड हम सब मिलकर कभी ज्यादा फुर्सत होने पर खोज सकते है.... वैसे आज का समाचार पत्र भी मेरे कथन को बल देता है।
खैर यहाँ मै बात "भाग्यो प्रधाना कर्मा: द्वितीया" की करने जा रहा हो तो फिलहाल मुर्गी और उसके अंडे को अभी भूल जाय।
कर्म क्या है ? बताने की आवश्यकता नहीं आप सभी जानते है ( कुछ अकर्मी लोगों के सिवाय)।
भाग्य क्या है ? सहज सरल सब्दो में कहे तो यह आपके द्वारा किये गए समस्त कर्मो के प्राप्त/अप्राप्त फल के लेखा बही का किसी उल्लेखित पल में बकाया हिसाब भर है।
मगर भाग्य और कर्म का हिसाब इतना सहज सरल भी नहीं है क्योकि भाग्य वास्तव में यदि आपके कर्मो का ही शेष लेखा बही है तो इसका अर्थ है कि यह सीधे सीधे आपके कर्मो पर निर्भर करता है ।
तुलसीदास जी ने कहा है " होइहै वही जो राम रच राखा" जिसके आधार पर प्राय: लोग कहते है कि होगा वही जो भगवान ने निर्धारित कर रखा है। मगर यह किसके सन्दर्भ में कहा गया है ? हमारे-आपके या रामचंद्र जी के सन्दर्भ में ? निश्चित ही यह रामचंद्र जी के सन्दर्भ में कहा गया है कि होगा वही जो रामचंद्र जी के कर्मो के प्राप्त/अप्राप्त फल का बकाया हिसाब होगा ।
भगवान श्री कृष्ण की गीता कहती है कि :-
" कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंशान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान "
मगर कब और कितना यह स्पष्ट नहीं है यह भगवान ने अपने अधिकार में रखा है।
फल कभी पहले आवो पहले पावो के अनुरूप पंक्तिबद्ध होकर मिलाता है तो कभी पंक्ति तोड़ कर अलग से तत्काल भी मिल जाता है। इसका नियम अंग्रेजी के व्याकरण के अनुरूप ही चलता है , तमाम नियम है मगर कोई भी नियम सर्वव्यापक नहीं है , सबके अपवाद यहाँ है ।
कर्म के पुजारी कहते है कि "कर्म से आप अपना भाग्य बदल सकते है, केवल भाग्य के सहारे बैठने वाले को कुछ भी नसीब नहीं होता है " मगर क्या भाग्य आपके कर्म को नहीं निर्धारित करता है ?
" कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंशान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान "
मगर कब और कितना यह स्पष्ट नहीं है यह भगवान ने अपने अधिकार में रखा है।
फल कभी पहले आवो पहले पावो के अनुरूप पंक्तिबद्ध होकर मिलाता है तो कभी पंक्ति तोड़ कर अलग से तत्काल भी मिल जाता है। इसका नियम अंग्रेजी के व्याकरण के अनुरूप ही चलता है , तमाम नियम है मगर कोई भी नियम सर्वव्यापक नहीं है , सबके अपवाद यहाँ है ।
चलिए जरा एक उदाहरण से समझाने की कोशिश करता हूँ........
एक घर जो किसी जगह पर स्थित है और उसमें रात्रि के समय तीन व्यक्ति हैं ठहरें है - पहला और दूसरा व्यक्ति जाग रहें है, जबकि तीसरा गहरी नींद में है, अचानक भूकंप आने के संकेत है ।
पहला व्यक्ति तत्काल घर से बाहर निकल कर खुले आसमान के नीचे आ जाता है ।
दूसरा यह मान कर कि यह तो मामूली सा भूकंप है अभी ख़त्म हो जाएगा घर में ही रहता है और India-Tv पर भूकंप के चटपटे समाचार की तलाश में टी.वी. आन करने में व्यस्त हो जाता है ( आपकी इच्छा हो तो आप किसी और समाचार चैनल को मान लें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है मगर चटपटे समाचार के लिए मै वही जाता हूँ )
और तीसरा व्यक्ति जो गहरी नींद में है उसे ताजे घटनाचक्र के बारे में कोई जानकारी नहीं है तो वो बेचारा सोता रहता है।
और फिर अचानक घर गिर जाता है जिसके कारण पहला व्यक्ति तो बच जाता है मगर बाकी के दो मारे जाते है..!
और फिर अचानक घर गिर जाता है जिसके कारण पहला व्यक्ति तो बच जाता है मगर बाकी के दो मारे जाते है..!
तो कर्म के पुजारी कहेंगे कि पहले ने उचित समय पर उचित कर्म किया और बच गया , बाकियों ने उचित कर्म नहीं किया इसीलिए मर गए, भाग्य के पुजारी कहेंगे कि जिसके जो भाग्य में था वैसा हुवा इसमें कोई क्या कर सकता है ?
चलिए मान लेते है कि पहले ने कर्म किया और दुसरे ने उचित समय पर उचित कर्म नहीं किया मगर तीसरे को तो कोई कर्म करने का अवसर ही कहाँ मिला ? वो तो बेचारा सो रहा था !
क्या बाकी दोनों का उचित कर्म ना कर पाना उनके भाग्य द्वारा निर्धारित नहीं है ?
और अगर यह सत्य है तो कैसे कह सकते है कि हम सदैव अपने कर्म से भाग्य बदल सकते है...
हाँ यह कभी-कभी ही सत्य है जब आपका भाग्य भी इस तरह का हो कि आप अपने कर्म से भाग्य बदल सके ।
क्या बाकी दोनों का उचित कर्म ना कर पाना उनके भाग्य द्वारा निर्धारित नहीं है ?
और अगर यह सत्य है तो कैसे कह सकते है कि हम सदैव अपने कर्म से भाग्य बदल सकते है...
हाँ यह कभी-कभी ही सत्य है जब आपका भाग्य भी इस तरह का हो कि आप अपने कर्म से भाग्य बदल सके ।
तो :- १. व्यक्ति अपने कर्मो से अपना भाग्य बनाता है।
२. आपका भाग्य ही यह निर्धारित करता है कि आप कब और क्या करेंगे और क्या नहीं करेंगे।
और जैसा कि पहले कहा है कि कब और कितना फल मिलेगा यह स्पष्ट नहीं है और यह भगवान ने अपने अधिकार में रखा है।
इसे जरा फिर से दूसरे उदाहरण, भारत के सबसे ताकतवर पद के सन्दर्भ में देखें -
इसे जरा फिर से दूसरे उदाहरण, भारत के सबसे ताकतवर पद के सन्दर्भ में देखें -
१. प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रा गाँधी को पहली बार सत्ता उनके भाग्य से प्राप्त हुयी (कांग्रेसी इससे असहमत हो सकते है मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है) फिर जब वो सबसे ज्यादा ताकतवर थी और सत्ता पाने हेतु जब सबसे ज्यादा कर्म किया तभी उनके भाग्य ने उनसे सत्ता छीन ली और फिर जब उन्होंने कुछ भी विशेष कर्म नहीं किया तब गैर कांग्रेसी सरकार के कर्मो ने उन्हें फिर सत्ता का सुख दे दिया।
२. फिर अचानक एक दुखद घटना घटित होती है और भाग्य राजीव गाँधी को अचानक प्रधानमंत्री बना देता है। फिर जब वो दुबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए कर्म करते है तो पुन: भाग्य अपना खेल खेलता है ।
३. इस के पहले पी वी नरसिंहा राव जिन्हें अधिक उम्र हो जाने के कारण राजीव गाँधी ने टिकट नहीं दिया था और उन्होंने अपने समस्त राजनैतिक कर्म करने और उसके अनुरूप फल प्राप्त कर लेने के बाद मन से अथवा बेमन से लगभग संन्यास ही ले लिया था को अचानक पुन: भाग्य वापस राजनीत में ले आता है और बिना किसी तात्कालिक कर्म के भाग्य अचानक प्रधानमंत्री बना देता है (इस बार कांग्रेसी इससे सहमत होंगे।
एन.डी तिवारी और पवार साहेब अपने सब प्रकार के कर्मो के बाउजूद उस पद से महरूम हो जाते है। फिर जब दुबारा पी वी नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश करने का कर्म करते है तो इस बार उन्हें भाग्य बाहर का रास्ता दिखा देता है।
तो प्रधानमंत्री बनाने के लिए जब कर्म नहीं किया गया तो पद मिला और जब कर्म किया गया तो पद नहीं मिला !
और देखे... तीसरा उदाहरण
प्राय: देखने में आता है कि एक गरीब बच्चा अपने अथक परिश्रम एवं उचित कर्म से संसार का सबसे धनी व्यक्ति बन जाता है।
बहुत से धनी व्यक्ति अपने अनुचित कर्म से अपने पुरखो का संचित धन भी नष्ट कर पुन: गरीब हो जाते है।
यह सब तो कर्म का प्रताप माना जा सकता है
मगर
- एक बच्चा उस घर में जन्म लेता है जहाँ सोने चांदी के चम्मच से उसे दूध पिलाया जाता है।
- दूसरा उस घर में जन्म लेता है जहां कांच या प्लास्टिक के बोतल से उसे दूध पिलाया जाता है।
- और एक तीसरा बच्चा पैदा होते ही किसी सडक या कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है, कभी बच जाता है तो कभी पहले दिन ही संसार से विदा हो जाता है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें