जिन्हें चाहिए बल औरों का ,
वो पूजा करें बलवानों का ।
मुझको अपने बल का भरोसा,
क्यों मान रखूँ अभिमानों का ।
जो लोग पूजते हैं उनको ,
जो हों चढ़ते सूरज की तरह ।
वो क्या आश्रय देंगे तुम्हे ,
तुम ढलते हुए सूरज की तरह ।
वो स्वं निर्भर हैं औरों पर ,
औरों से बल पाते हैं ।
औरों के बल पर अब तक ,
कौरव बनकर जी पातें हैं।
जो लोग बनाते सूरज है ,
वो लोग ही बल दे पातें हैं ।
निज बुद्धि और बाहुबल से ,
रक्षित जग को कर पातें हैं ।
चाहे जितने बलशाली हों ,
ये शूर-वीर कौरव दल के ।
नहीं टिके हैं नहीं टिकेंगे ,
पांडव के आगे छल बल से।
ये कथा नहीं महाभारत की ,
हर युग का लेखा-जोखा है ।
स्वंबली के बल के आगे,
पराश्रितों ने घुटना टेका है।।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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