हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://www.vmanant.com/?m=1

शनिवार, 22 जनवरी 2011

हम सच मा झूठै कवितायित है...

मित्रों
आज किसी ब्लाग पर कुछ पढ़ते हुए एक संदर्भित लाइन "हम झूठै-मूठे गायित है, आपन जियरा बहलायित है| " पढ़ने को मिली
हालाँकि पूरी रचना तक मै नही पहुँच पाया मगर यही एक लाईन  सीधे दिल में उतर गयी...
फिर कुछ इन्ही शब्दों और भाव में (हालाँकि यह बोलचाल की भाषा मेरी लिए थोड़ी असहज है क्योंकि इसे सुनने और बोलने का अवसर नहीं मिला और आदत भी नहीं है मगर यह थोड़ी परिचित भी है क्योंकि है तो हिंदी ही और वो भी उत्तर प्रदेश के ही किसी क्षेत्र की।) लिखने को मन बैचैन होने लगा...

फिर देखते है कि मेरा मन अपने मन की कितना कर पाता है........ ?

तौ देखा समझा जाई , कुछ गलती होई तो बतावा जाई ...

 [ हमका ना समझौ तुम ब्लागर , हम झूठै ब्लाग पे आयित है ।
आपन जियरा बहलावे का , हम कबो-कबो ब्लागियायित है ।
सोंचित है हमहूँ मन मा , कुछ दुसरेव के ब्लाग पर पढ़ी लेई ।
जे जे हमरेप किहिस टिप्पणी है , कुछ उनहुक टीका कई देई । 
पै का कही ससुर नौकरी का , हमै टैमवै नाहि मिलि पावत है ।
टैम मिळत है जब कबहू , तब सार नेटे नाहि चलि पावत है ।

हमका ना समझेव तुम कवित्त , हम सच मा झूठै-मूठे कवितायित है ।
आपन जियरा बहलावे का , हम कबो-कबो ब्लाग पै लिख जायित है ।
फिर लिख देयित है सब वहै पुँराना , जो अपने डायरी मा पायित है ।
अब तो ताजा कुछ लिखै का , ससुर मौके नाहि निकारि पायित है ।
कबहूँ सोंचित है हम करब का , जब कुल संचित कविता चुकि जाई ?
प्यासे लगे पै लंठन सा का , तुरंतै नवा कवित्त कुवाँ खोदा जाई ??

हमका ना समझैव तुम लेखक , हमहू झूठै बहाँटियायित है ।
अनाप सनाप लिखिकै बस , हम आपन जियरा बहलायित है ।
पूजा करी भले ना कबहूँ , टीका लम्बा सदा लगायित है ।
कोई भले लपेटे मा आवै ना , हम तो भौकाल बनायित है ।
सीधे सपाट हम बोलित है , लल्लो चप्पो नाहि कै पायित है ।
दुसरेक छोड़ो अपनेव कबहूँ , हम ना तेल लगाय पायित है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

डा० अमर कुमार ने कहा…


पोस्टिया पढ़ित वहिसे पहिले हम कईसे भरमायित है,
पँडितवा जो आँखि मटकावत वहि देखि टिपियायित है

Vivek Mishrs ने कहा…

ह.हा.हा

वहो बस आपन जिया बहलावत है ,

झूंठे मूठे लैपटाप पर उन्गरी डोलावत है ।

Kailash C Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर व्यंग..

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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