मेरा क्या मै तो पंछी हूँ , आज यहाँ कल वहां मिलूँगा ।
ये भी रैन बसेरा है बस , वो भी रैन बसेरा होगा ।
जितना लिखा नीयति ने होगा , उतने दिन मै यहाँ रहूँगा ।
फिर जो शाख मिलेगी मुझको , जाकर फिर मै वहां बसूँगा ।
वो तो मानव हैं जो बैलो से , कोल्हू में हैं बँध कर रहते ।
गोल गोल बस घूम रहे हैं , घर के बस वो घर में रहते ।
चाहे जो भी मिले उन्हें , वो उतने से ही बस खुश रहते ।
उन लोगों की नीयति कुआँ है , उसमे वो मेढक सा रहते ।
मै तो उड़ता पंछी हूँ , मेरा क्या तुम कर लोगो ।
मै डाल डाल पर फिरता हूँ , तुम कहाँ जाल में धर लोगो ।
तुम पेड़ काट सकते हो केवल , अपने घर के आंगन के ।
पर बहर भी कई जंगल हैं , जो स्वागत फल से करते हैं ।
लो तुम्ही संभालो अपने ये , खट्टे मीठे कसैले फल ।
मै तो सदा से पंछी हूँ , और जंगल में हैं मीठे फल ।
तुम्हे मुबारक आंगन तेरा , मेरी किस्मत में जंगल है ।
मेरे जीवन में शांति सदा , तेरे जीवन में बस दंगल है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें