हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

सीख

समय की गति को , समय ही माप सकता है ।
समय की दिशा को , समय ही बदल सकता है ।
समय के घाव को , समय ही भर सकता है ।
समय का विकल्प , समय ही हो सकता है ।
अत:
समय के साथ चलने की आदत डालो ।
बीत रहे समय का हमसफर बनो और
समय को गुलाम समझने की भूल मत करो ।

दिन का अंत सदा , रात्रि से होती है ।
रात के बाद सदा , नयी शुबह होती है ।
जीवन का अंत सदा , मृत्य से होता है ।
मृत्यु के बाद फिर , जन्म नया होता है ।
सुख के अंत पर , दुःख सदा होता है ।
दुःख के बाद ही , सुख नया होता है ।

इस चराचर जगत में , स्थिर कहाँ कुछ होता है ।
जो समझ पाता नही , वो ही सदा रोता है ।
बाँधना वाह चाहता है , हर चीज अपने आप से ।
कुछ साथ में कुछ पास में , कुछ को दूर के घाट से ।
जो उसे खुश कर पाये , वो उसे लगता भला ।
फुँकता वह छाज  को , दूध से लगता जला ।

दुश्मनी का अंत ज्यों , दोस्ती से होता है ।
दोस्ती का अंत बीज , दुश्मनी का बोता है ।
सीखना सबको पड़ेगा , है जगत का जो नियम ।
आंधियो के बाद फिर , शांति का जग में नियम ।
शांति जब घनघोर हो , तूफान लाती है सदा ।
ठोकरे इन्सान  को , नयी सीख देती है सदा ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

समयचक्र ने कहा…

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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