घाव भी ताजा ही था , दर्द भी ज्यादा ना था ।
चाहते उस वक्त ही , तुम रोक सकते थे मुझे ।
चोट मेरा सहलाकर , तुम बहला सकते थे मुझे ।
पर तुमने ना ऐसा किया , जाने मुझको भी दिया ।
लक्ष्य मुझको ही बनाकर , व्यंग भी तुमने किया ।
तुमने सोचा था भूलकर , दर्द मै फिर से आऊंगा ।(2)
तेरे पत्थर दिल पर मै , अपना शीश टिकाऊंगा ।
लेकिन तुम ये भूल गए , दिल के रिश्ते नाजुक हैं ।
यदि दो पल में ये बनते है , पल में टूट भी जाते है ।
घाव सूख जाते है वो , जिनसे बहती रक्त की धारा है ।
घाव नही भर पाते वो , जो चोट शब्द के खाते है ।
हाँ सही है लौट कर , स्वयं मै नही आया कभी ।
लेकिन क्या तुमने मुझे , दिल से था पुकारा कभी ।
चाहते देकर वास्ता , सम्बन्धो का मुझे रोक लेते ।
पाँव में रिश्तों की बेडी , डाल कर तुम छेंक लेते ।
लेकिन तुमने चाहकर , कुछ भी किया ऐसा नही ।
शायद मैंने ही पत्थर को , समझा था दिल कहीं ।
मै बाट जोहता रहा सदा , तुम फिर से मुझे बुलाओगे ।
मेरे व्याकुल दिल को तुम , मीठे शब्दों से बहलाओगे ।
लेकिन तुमने भूले से भी , याद किया ना मुझे कभी ।
बस कोरम पूरा करने को , करते हो शिकवे आज अभी ।
रिश्ते केवल बातो से , चलते नही हैं यहाँ कभी ।
सूखी डालों पर पंछी , कहो रहते है कहाँ कभी ।
8 टिप्पणियां:
dil par lagi chot to hamesha teesti rahti hai...
हा हा हा
सही कहा जनाब आपने
dil ki chot ka koi ilaj nahi hai
unko dekhte hi aajati hai chehere pe roinak
vah samajhhte hai bimar ka hal achha hai
मैं ये सोचकर उसके घर से चला था कि आवाज देकर बुला लेगी मुझको...
सुशील वाकलिवाल जी का गीत ही मेरे मन मे आया जब आपकी रचना पढ रही थी। दिल की चोट से उपजी मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
इसलिए कहा जाता है कि रूठने से पहले सोचना चाहिए, वैसे दोस्ती में गिले-शिकवे चलते हैं लेकिन जिन रिश्तों से हम दूर नहीं रह सकते वहां पहल करने में बुराई नहीं लेकिन यह सोच मेरी है। रचना बहुत अच्छी है दिल से लिखी हुई....
गहरी चोट को दर्शाती रचना।
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