हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

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सोमवार, 6 दिसंबर 2010

स्वप्नों का संसार अलग, अलग धरा का ठोस धरातल ।

स्वप्नों का संसार अलग ,
अलग धरा का ठोस धरातल ।
एक में मुक्त विचरता मानव ,
एक में बंध कर रहता मानव ।

ठोस धरा में बोने पर ,
बीज हकीकत का उगता ।
स्वप्नलोक में आसमान से ,
पौधा धरती पर उतरता ।

कच्चे धागों के रिश्ते ,
स्वप्नलोक में होते नही ।
ठोस धरातल पर ज्यादा ,
अनगढ़ रिश्ते चलते नही ।

ये तुम हो जिसको बढकर ,
आज फैसला करना है ।
स्वप्नलोक और ठोस धरा में ,
किसी एक को चुनना है ।

मानव की मर्यादा का ,
ध्यान भी तुमको रखना है ।
स्वप्नलोक की सभी कल्पना ,
ठोस धरा पर रचना है ।

स्वप्न-दृष्टा  से आगे बढ़ ,
युग-दृष्टा  तुमको बनना है ।
अपने निज बल से तुमको ,
स्वप्न हकीकत करना है ।।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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