हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 19 जनवरी 2011

अपनापन और उसके कारण...

हर उम्र की अपनी धडकन है ,
हर मोड़ की अपनी जकड़न है ।
हर राह की अपनी गाथा है ,
हर व्यक्ति की निज परिभाषा है ।
हर राग के अपने साज यहाँ ,
हर साज के अपने राग यहाँ ।
हर धर्म की अपनी भाषा है ,
हर भाषा के निज धर्म यहाँ ।
हर उम्र के अपने अनुभव हैं ,
हर व्यक्ति की अपनी मंजिल है ।
हर मोड़ की अपनी राहें हैं ,
हर राह के अपने साथी हैं ।
हर उत्सव के कुछ कारण है ,
हर कारण पर कुछ उत्सव हैं।
हर रिस्तो के पीछे अपने हैं ,
हर अपनो से ही रिश्ते हैं ।
हर उम्र की अपनी बेचैनी है ,
हर मोड़ की अपनी तकलीफें है ।
हर राह के अपने कांटे हैं ,
हर व्यक्ति को सुख दुःख आते हैं ।
हर नदी के अपने किनारे हैं ,
हर उंजियारे के अंधियारे हैं ।
हर जोड़ के अपने तोड़ यहाँ हैं ,
हर कारण के निज कारण हैं ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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