उलझने ये जिंदगी की , ख़त्म नहीं होंगी कभी ।
साथ में जीना हमें , सीखना होगा अभी ।
नाव की कीमत तभी , जब नदी की धार में हो ।
बह रही हो धारा उलटी , वहीँ खेवैये की बात हो ।
धारा के संग साथ में , बह जाते निर्जीव भी ।
धारा के विपरीत ही , होती जरुरत सामर्थ की ।
हाँ उलझनों के बिना , नहीं जिंदगी का सार है ।
ज्यों कसौटी के बिना , नहीं होता स्वर्ण व्यापार है ।
ज्यों कसौटी के बिना , नहीं होता स्वर्ण व्यापार है ।
आग में तपकर सदा , फौलाद है बनता यहाँ ।
संसार से भाग कर , जिंदगी है बदरंग यहाँ ।
तूफान के विपरीत जो , ढाल बनते हैं यहाँ ।
उनके आगे ही सदा , झुंकता है सारा जहाँ ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
बहुत ही प्रेरणात्मक अभिव्यक्ति....संघर्ष के बिना जीवन में कुछ प्राप्त नहीं होता...आभार..
उचित है और सत्य भी.. क्योँकि जिँदगी जंग है जिसे जीतकर खुश होना है।
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