मृग रूप धर मारीच ने , करना चाहा था धोखा ।
कहते है तभी द्वार पर , लक्ष्मण ने खींची थी रेखा ।
उसे रावण भी लाँघ न पाया, ना भंग उसे कर पाया ।
फिर जाल बिछाकर शब्दों का , सीता को उसने उलझाया ।
आ जाओ बाहर रेखा के , यही सीता को उसने समझाया ।
तब से लक्ष्मन रेखा को , फिर जिस नारी ने पार किया ।
ना लौट सकी वो घर वापस , घर को अपने बर्बाद किया ।
दीवार नहीं है लक्ष्मण रेखा , जो खींची जाती हर युग में ।
मर्यादाओं की परिधि है ये , जिसमे सुरक्षित है नारी सदा ।
ये बंधक नहीं बनाती है , बस बुरी नीयति से ये बचाती है ।
त्रेता युग से कलयुग तक , सदा अपना कर्त्तव्य निभाती है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
सुंदर प्रस्तुति....
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
मर्यादाओं की परिधि है...बिल्कुल सही..उम्दा रचना!
मर्यादाओं का भी एक अपना स्थान है...सुन्दर प्रस्तुति...
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