क्या कहें हम आपसे ,
कैसे कहें हम सच अभी ।
साँस है उखड़ी अभी ,
और राज की है बात भी ।
तुमने दिया है वास्ता ,
गीता का हमको अभी ।
कैसे कहें हम पूरा सच ,
जब वासना मन में भरी ।
वासना एक शब्द है जो ,
है समेटे भाव अगणित ।
जो इसे जाना नहीं ,
वो ही यहाँ पर है व्यथित ।
मेरा क्या मै तो यहाँ ,
पहले से ही हूँ अतिथि ।
जितनी तरह की वासनाएं ,
सब से हूँ मै पतित ।
इस पल भी मै कुछ ऐसे ही ,
हाल से गुजरा अभी ।
मन में उभरे भावों को ,
कुछ पल जिया मैंने अभी ।
इससे ज्यादा क्या कहूँ ,
कुछ राज की है बात भी ।
साँस थम जाये जरा ,
फिर कहूँ आगे कुछ और भी ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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