हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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गुरुवार, 16 सितंबर 2010

कोई बात है यारों ।

नदी की धार में बहना , बहुत आसान है यारों ।
   तैर पाओ अगर विपरीत , तो कोई बात है यारों ।

     बनाना नित नये रिश्ते , बहुत आसान है यारों ।
       निभा पाओ कठिन क्षण  में , तो कोई बात है यारों ।

         बादलों की घटा बनना , बहुत आसान है यारों ।
           बरस पाओ अगर मरू में ,  तो कोई बात है यारों ।

             सिखाना औरों को बातें , बहुत आसान है यारों ।
               कदम अपने उठाओ जब ,  तो कोई बात है यारों ।

                 हवा के पुल बनाना तो , बहुत आसान है यारों ।
                   हकीकत को समझ पाओ , तो कोई बात है यारों ।

                     मुझसे मिलना मेरे घर पर , बहुत आसान है यारों ।
                       मुझे घर अपने बुलाओ जब ,  तो कोई बात है यारों ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

क्या हौसला है! .......बहुत सुन्दर...
http://sharmakailashc.blogspot.com/

Unknown ने कहा…

मुझसे मिलना मेरे घर पर बहुत आसान है यारों
मुझे घर अपने बुलाओ जब, तो कोई बात है यारों।
सादर आमंत्रित हैं भाई साब! जब भी एमपी की बॉर्डर में आएँ। राजधानी भोपाल से लगभग 200 किमी दूर है इंदौर।

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

Bahut acche bhai sahab .... Bahut sundae panktiyan hain ......munbhavan

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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