हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

राजनीत

अपनो पर करम गैरों पर सितम , यही राजनीत बतलाती है ।
जो भी मिले बस लूटे रहो , ये बात हमें सिखलाती है ।
क्या अपना क्या औरों का , जो हाथ लगा ले चलना है ।
अभी हाथ में अवसर है , फिर जाने कब ये मिलना है ।
जो चीज बिके वो बेंचे चलो , जो नहीं बिका उसे लेते चलो ।
ना होगा कबाड़ी वाले को , औने पौने में देते चलो ।
चौराहे जितने खाली हो , बुत अपना वहां लगाते रहो ।
पैसे देकर चमचों से , जिंदाबाद कहलाते रहो ।
रोजी रोटी भले ना दो , हवा में तीर चलाते रहो ।
सत्ता स्थिर रखनी हो , सत्ता के दलाल बनाते रहो ।
अपनो पर करम गैरों पर सितम , ये मूल मन्त्र अपनाते रहो ।
जो भी हो बिरोधी उसके मुख पर , कालिख सदा लगाते रहो ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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