ओ मुसाफिर इस तरह तू , है यहाँ हैरान क्यों।
लगता है पहली दफा , इस देश में आया है तू।
दूध की ये नालियां जो , दिख रही बहती तुझे।
ये हकीकत में लहू है , जो लाल रह पाया नहीं।
दिख रही तुझको यहाँ जो , हर तरफ ही होलिका।
वो हकीकत में है जलती , नव बधुओं की डोलियां।
दिख रही तुमको यहाँ जो, होलिहारियो की टोलियां।
वो हकीकत में खेलकर , आ रहीं खून की होलियां।
और ये जो भद्र पुरुष , तेरी बाँह में बाँह डाल रहे।
वो हकीकत में तुम्हारी , गर्दन को नापने जा रहे।
ओ मुसाफिर दिख रहा , क्यों हैरान है इस तरह।
लिख रहा क्यों व्यर्थ में , बकवास मै इस तरह।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन स्वामी विवेकानन्द जी की १५० वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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